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सत्यार्थ प्रकाश (४१वाँ संस्करन) – हार्डकवर Satyarth Prakash (41st Edition) – Hardcover

Original price was: ₹250.00.Current price is: ₹249.00.

सत्यार्थ प्रकाश महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित एक अमूल्य वैदिक सुधार ग्रंथ है।
यह पुस्तक समाज में प्रचलित आडम्बर, अंधविश्वास, पाखण्ड और कुरीतियों का तार्किक खंडन करते हुए, वेद-आधारित सत्य, धर्म, नैतिकता और जीवन-दर्शन को अत्यंत स्पष्ट रूप में प्रस्तुत करती है।
41वाँ संस्कारण मूल ग्रंथ के प्रामाणिक एवं शुद्ध पाठ पर आधारित है, जिसे विद्यार्थी, अध्येता, विचारक, और सामान्य पाठक सभी आसानी से समझ सकते हैं।

English:
Satyarth Prakash is a timeless work written by Maharshi Dayanand Saraswati.
This 41st Edition provides the authentic and original text in a clean and refined format.
The book challenges superstitions, blind traditions, and ritualistic distortions, presenting a rational Vedic worldview based on truth, ethics, and spiritual clarity.
Ideal for students, seekers, researchers, teachers, and institutions.

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Description

परोपकारिणी सभा अजमेर में महर्षि दयानन्द सरस्वती के प्रायः सभी ग्रन्थों की मूल प्रतियाँ हैं। इनमें से सत्यार्थप्रकाश की दो प्रतियाँ हैं। इनके नाम ‘मूलप्रति’ तथा ‘मुद्रणप्रति’ रक्खे हुए हैं। मूलप्रति से मुद्रणप्रति तैयार की गई थी। मुद्रणप्रति (प्रेस कॉपी) के आधार पर सन् १८८४ ईसवी में सत्यार्थप्रकाश का द्वितीय संस्करण छपा था। इतने लम्बे अन्तराल में विभिन्न संशोधकों के हाथों इतने संशोधन, परिवर्तन तथा परिवर्द्धन हो गए कि मूलपाठ का निश्चय करना कठिन होने लग गया था। मूलप्रति से मुद्रणप्रति लिखनेवाले महर्षि के लेखक तथा प्रतिलिपिकर्त्ता ने सर्वप्रथम यह फेर बदल की थी। महर्षि अन्य लोकोपकारक कार्यों में व्यस्त रहने तथा लेखक पर विश्वास करने से मुद्रणप्रति को मूलप्रति से अक्षरशः नहीं मिला सके। परिणामतः लेखक ने प्रतिलिपि करते समय अनेक स्थलों पर मूल पंक्तियाँ छोड़कर उनके आशय के आधार पर अपने शब्दों में अपना भाव अभिव्यक्त कर दिया। अनेक स्थानों पर भूल से भी पंक्तियाँ छूट गई तथा अनेक पंक्तियाँ दुबारा भी लिखी गई। अनेकत्र मूल शब्द के स्थान पर पर्यायवाची शब्द भी लिख दिये थे। मुंशी समर्थदान ने भी पुनरावृत्ति समझकर १३वें- १४वें समुल्लास की अनेक आयतें और समीक्षायें काट दीं। यह सब करना महर्षि दयानन्द सरस्वती के अभिप्राय से विरुद्ध होता चला गया। परोपकारिणी सभा से अतिरिक्त अन्य प्रकाशकों के पास पहले यह सुविधा भी नहीं थी कि वे मूलप्रति से मिलान करके महर्षि के सभी ग्रन्थों का शुद्धतम पाठ प्रकाशित कर सकें। परोपकारिणी सभा की ओर से भी कभी-कभी एक मुद्रणप्रति (प्रेस कॉपी) से ही मिलान करके प्रकाशन किया जाता रहा। मूलप्रति की ओर विशेष दृष्टिपात नहीं किया गया, किन्तु किसी-किसी ने कहीं-कहीं पाठ देखकर सामान्य परिवर्तन किये हैं और न कभी यह सन्देह ही हुआ कि दोनों प्रतियों में कोई मूलभूत पर्याप्त अन्तर भी हो सकता है।

Additional information

Weight 800 g
Dimensions 23 × 15 × 3 cm

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