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Paniniya: Ashtadhyayi Sutrapath:

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Description

पाणिनीय अष्टाध्यायी का इतिहास

पाणिनीय अष्टाध्यायी संस्कृत भाषायाः व्याकरणस्य एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थः अस्ति, यः पाणिनिनाम्ना विद्वांसात् रचितः अस्ति। अयं ग्रन्थः लगभग 400-500 ई. पू. तः अस्ति, यत्र पाणिनिः संस्कृत व्याकरणस्य नियमाः तथा विधीनाम् विस्तारपूर्वक विवेचनं करोति। अष्टाध्यायी नामकं अनेकेषां अध्यायानां समूहः अस्ति, यः व्याकरणस्य सिद्धान्तानां प्रारम्भिक आधारः युक्तिमयः च अस्ति।

व्याकरणविद्या के विकास में अष्टाध्यायी का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है। पाणिनीय अष्टाध्यायी के माध्यम से अनेक नियमों का क्रियान्वयन तथा अनुशासन की स्थापना हुई, जिससे संस्कृत भाषायाम् अनुशासन एवं व्यवस्था का विशेष महत्व हो गया। व्याकरण विद्या के क्षेत्र में अष्टाध्यायी ने आधारभूत सिद्धांतों को प्रस्तुत किया, जो बिना किसी संदेह के, पारम्परिक तथा आधुनिक विद्यालयानां लिए विशेषता प्रदर्शित करते हैं।

पाणिनीय अष्टाध्यायी न केवल संस्कृत के अध्ययन में भारी योगदान करती है, अपितु यह अन्य भाषाओं के अध्ययन तथा संरचनात्मक भाषाविज्ञान के क्षेत्र में भी मार्गदर्शन प्रदान करती है। अष्टाध्यायी के अनेके अध्याय विभिन्न प्रकार के व्याकरणिक नियमों को संचालित करते हैं, जो भाषाई संरचना की गहराई को दर्शाते हैं। संस्कृत का अध्ययन करने वाले शिक्षार्थियों के लिए अष्टाध्यायी अनिवार्य ग्रन्थ है, जो उन्हें व्याकरण की सठिकता और भाषाई ज्ञान में मदत करता है।

अष्टाध्यायी सूतरूपी संरचना

पाणिनीय अष्टाध्यायी सूत्रपाठः एक अद्वितीय ग्रन्थ है, जो संस्कृत व्याकरण की समृद्ध परंपरा का निर्माण करता है। इस ग्रन्थ की संरचना बहुत ही बौद्धिक और वैज्ञानिक है, जो सूत्रों एवं नियमों के सुसंगठित रूप को दर्शाता है। अष्टाध्यायी आठ अध्यायों में विभक्त है, जहाँ प्रत्येक अध्याय विशेष विषय का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है। यह संरचना न केवल भाषा के सिद्धांतों को स्पष्ट करती है, बल्कि इसके अनुप्रयोगों को भी विस्तृत रूप से परिभाषित करती है।

सूत्रपाठ का मूल उद्देश्य शब्दों के निर्माण, धातुओं के रूपांतरण, और व्याकरणिक नियमों की व्याख्या करना है। यह प्रणाली अनुशासन और नियमों पर आधारित है और इसे पाणिनि द्वारा अत्यंत परिष्कृत किया गया है। अष्टाध्यायी में प्रयुक्त सूत्र सरल, संक्षिप्त और व्यावहारिक होते हैं, जिससे ये अध्ययन के लिए अत्यन्त उपयोगी बनते हैं। यह भाषा विज्ञान के लिए न केवल मूलभूत सिद्धांतो का निर्माण करता है, बल्कि भावनात्मक एवं सांस्कृतिक व्युत्पत्तियों का भी विश्लेषण करता है, जिससे अध्ययन की गहराई में वृद्धि होती है।

पाणिनीय अष्टाध्यायी का अध्ययन संस्कृत भाषा की शिक्षा की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके द्वारा छात्रों को नियमों का पालन करने और भाषा के अनुरूप शब्दों का प्रयोग करने की कला सिखाई जाती है। इस प्रकार, अष्टाध्यायी की संरचना तत्वज्ञान एवं व्याकरण की एक एकीकृत प्रणाली प्रस्तुत करती है, जो संस्कृत भाषा को न केवल समकालीन दौर में जीवित रखती है, बल्कि इसे एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पुनः पहचान दिलाती है।

Additional information

Weight 184 g
Dimensions 22 × 14 × 1 cm

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