Tattvamasi
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Description
यतिवर विद्यानन्द सरस्वती द्वारा लिखित ‘तत्त्वमसि प्रथवा श्रद्वैतमीमांसा’ ग्रन्थ दार्शनिक वाङ्मय के क्षेत्र में एक विशिष्ट संयोजन है। प्राचीन दार्शनिक चिन्तनों का आश्रय करके स्वतन्त्र रूप से तर्कभूयिष्ठ जो अल्पसंख्यक ग्रन्थ हिन्दी में लिखे गये हैं, उनमें यह अन्यतम है। हम समझते हैं कि डॉ० भगवान् दास, डॉ० सम्पूर्णानन्द बादि ने प्राचीन दार्शनिक मतों को लेकर हिन्दी में स्वतन्त्र-ग्रन्थ-लेखनपरम्परा की जो नींव डाली थी, उस परम्परा का बहुत ही सफलतापूर्वक प्रतिनिधित्व वर्तमान ग्रन्य करेगा। यह ग्रन्थ ग्रन्थकार के दीर्घकालिक मनन का फल है-इसमें संशय नहीं है। पहले भी ग्रन्थकार ने दार्शनिक मनन के क्षेत्र में अपनी पटुता दिखाई है, जो उनके (पूर्वाश्रम के ग्रन्थ) ‘अनादितत्त्वदर्शन’ से ज्ञात होती है। प्रस्तुत ग्रन्थ आधुनिक काल के शिक्षित दर्शनविद्याप्रेमी विचारकों के मन को अवश्य ही प्रभावित आध्यापित करेगा, ऐसा मैं निःशङ्क होकर कह सकता हूँ । ग्रन्थ के नाम से किसी को यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि इसमें ‘तत्त्वमसि’ वाक्य को लेकर ही प्रमुख रूप से विचार किया गया है और न ही यह समझना चाहिए कि प्रचलित अद्वैतवाद की कोई विशिष्ट व्याख्या करना ग्रन्थकार का उद्देश्य है। प्रस्तुत ग्रन्थ में उपर्युक्त दोनों विषयों पर आलोचना रहने पर भी ग्रन्थ का विचारक्षेत्र पर्याप्त विस्तृत है। मुख्यतया ईश्वर, जीव और प्रकृति के स्वभावकार्यादि पर दार्शनिक दृष्टि से विचार करना ग्रन्थकार का उद्देश्य है, पर इन विषयों से साक्षात् एवं परम्परा से सम्बन्धित अनेक आवश्यक विषयों (स्वप्न, आदि) की विशद चर्चा भी इस ग्रन्थ में मिलेगी, जो बहुत ही उपादेय प्रतीत होती है।
Additional information
Weight | 700 g |
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Dimensions | 23 × 15 × 3 cm |
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