Suryasiddhanta of Bhaskaraansh purush Vol 1- 2
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विश्व को भारत की अप्रतिम देन है गणित। इसमें भी ग्रहगणित का कोई सानी नहीं। ज्योतिष के मुख्य अंग के रूप में गणित का जो महत्व रहा है, वह सूर्यसिद्धान्त से आत्मसात किया जा सकता है। यद्यपि सूर्यसिद्धान्त का प्रारम्भिक रूप हमें वराहमिहिर कृत ‘पञ्च सिद्धान्तिका’ के सोलहवें और सत्रहवें अध्यायों में उपलब्ध होता है जिसे स्वयं वराह ने ‘ताराग्रहनिर्णय अर्कसिद्धान्त’ भी कहा है। वर्तमान सूर्यसिद्धान्त 6 वीं शताब्दी में बहुत प्रामाणिक रूप में गणित के अनेक विषयों को लेकर सामने आया। मय-सूर्य संवादरूप इस आर्षत्व ग्रंथ में मध्यमाधिकार, स्पष्टाधिकार, त्रिप्रश्नाधिकार, चन्द्रग्रहणाधिकार, सूर्यग्रहणाधिकार, छेद्यकाधिकार, ग्रहयुत्यधिकार, भग्रहयुत्यधिकार, उदयास्ताधिकार, चन्द्र श्रृंगोन्नत्यधिकार, पाताधिकार, भूगोलाध्यायाधिकार, ज्योतिषोपनिषदाध्याय और मानाध्याय नाम से 14 अधिकार हैं और 500 श्लोक हैं। खगोल की अनेक घटनाओं के अध्ययन और अध्यापन के लिए यह बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ और इस पर अनेक ज्योतिर्विदों, गणितज्ञों ने टीकाएँ की जिनमें श्रीरंगनाथ की गूढ़प्रकाशिका टीका और उसकी उपपत्तियाँ बहुत प्रसिद्ध हैं। आधुनिक गणित के सिद्धान्तों, सूत्रों के आधार पर इस भारतीय गणितग्रन्थ का विज्ञान भाष्य सुप्रसिद्ध गणितज्ञ, मूर्धन्यविद्वान महावीरप्रसाद श्रीवास्तव ने किया है। इस ग्रन्थ की उपयोगिता सार्वकालिक रही है। प्रस्तुत संस्करण में गूढ़प्रकाशिका संस्कृत टीका सहित विज्ञान भाष्य का सुन्दर सम्पादन इसको बहुपयोगी सिद्ध करेगा…
Additional information
Weight | 1450 g |
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Dimensions | 22 × 14.5 × 7.5 cm |
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