Vaidik Arth-Vyavastha Visheshank
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वेदवाणी के तिरसठवें वर्ष का आरम्भ ‘वैदिक अर्थव्यवस्था’ विशेषाङ्क से
Description
वेदवाणी के तिरसठवें वर्ष का आरम्भ ‘वैदिक अर्थव्यवस्था’ विशेषाङ्क से किया जा रहा है। अर्थ का महत्त्व व्यक्ति-समाज-राष्ट्र-विश्व में सदा रहा है। आरम्भिक समाज का ढांचा अत्यन्त सरल था। जैसे-जैसे विकास होता गया, अनेक प्रकार की जटिलताएं सामने आने लगी। प्रारम्भ में वस्तु से वस्तु का विनिमय होता था। किसान के पास अन्न था, जूता नहीं था, चर्मकार के पास जूता था, पर अन्न नहीं था। दोनों अपनी-अपनी वस्तुओं का परस्पर विनिमय कर लेते थे। इस प्रकार ‘वस्तु-विनिमय’ से काम चल
जाता था। परन्तु कालान्तर में इस व्यवस्था में कठिनाई उत्पन्न होने लगी। समाज का तेजी से विकास हो रहा था, लोगों की आवश्यकताएं बढ़ रही थीं। आर्थिक क्रियाकलाप बहुत बढ़ गया, वस्तु विनिमय का स्थान द्रव्य विनिमय ने ले लिया। साधन के रूप में किसी चिरस्थायी द्रव्य की आवश्यकता हुई जो बहुमूल्य और सुदृढ़ हो। इसलिए स्वाभाविक रूप से सोने और चांदी को विनिमय का साधन बनाया गया। ये धातुएं मूल्वान् तथा दुर्लभ थीं। इनके छोटे छोटे टुकड़े लेकर अर्थाधिकारी से शास्कीय ठप्पा लगवा लिया जाता था,
Additional information
Weight | 229 g |
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Dimensions | 22 × 17 × 1 cm |
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