Sale!

Janm Jivan Mrtyu

Original price was: ₹30.00.Current price is: ₹27.00.

Description

जब से सृष्टि की रचना हुई है, मनुष्य के हृदय में यह प्रश्न उठता रहा है कि यह संसार क्या है, कैसे बना तथा किस हेतु बना ? योगदर्शन २.१८ सूत्र में इस समस्या का सुन्दर वर्णन है।
प्रकाशक्रियास्थितिशीलं भूतेन्द्रियात्मकं भोगापवर्गार्थं दृश्यम्
अर्थात् प्रकृति के सत्व, रजस्, तमस् रूपी तीनों गुणों का यह दृश्यमान जगत् परिणाम है, यह उसका स्वभाव है। और पांचों सूक्ष्म भूतों तथा स्थूल भूतों का यह स्वरूप है। शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध रूपी सूक्ष्म भूत (तन्मात्रायें) तथा पृथिवी, अप्, तेज, वायु, आकाश रूपी स्थूल भूतों का जब इन्द्रियों मन चित्त के साथ आत्मा का संयोग होता है तो सृष्टि की उत्पत्ति होती है। परमात्मा इसका निमित्त कारण होता है।
किसलिये परमात्मा ने संसार की रचना की ? उत्तर देते हैं कि भोग तथा अपवर्ग के लिये यह दृश्यमान जगत् बना। आदिकाल से जीव आत्मा चित्त में संस्कारों तथा वासनाओं से आवेष्टित, जन्म-मरण के चक्कर में चलता रहता है तथा अपने ही शुभ-अशुभ कर्मों के अनुसार सुख-दुःख भोगता रहता है। इस प्रकार भोग भोगता हुआ इन दुःखों से छूटने के लिये मोक्षप्राप्ति के लिये सतत प्रयास करता रहता है। अतः भोग और अपवर्ग के हेतु भगवान् ने यह संसार बनाया। जन्म और मरण के ऊपर तो जीव का कोई अधिकार नहीं है। इन दोनों के मध्य में जो जीवन धारा बहती है उसी पर इस का अधिकार है। इसीलिये पाणिनि मुनि ने कहा
स्वतंत्रः कर्त्ता
इस जीवन को कैसे सफल बनाया जाये तथा धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष रूपी जीवन के उद्देश्य को कैसे प्राप्त किया जाये इसके लिए भगवान् ने हमें वेद रूपी ज्ञान दिया जिसपर आचरण करते हुए हम जीवन सफल कर सकते हैं। इसी वेदामृत में उपासना योग रूपी राजमार्ग दर्शाया।
युञ्जानः प्रथमं मनस्तत्वाय सविता धियः अग्नेर्थ्योतिर्निचाय्य पृथिव्या अध्याभरत्॥
अर्थात् अपने मन और बुद्धि को उपासना योग द्वारा परमात्मा से युक्त करके, उसकी प्रकाश-ज्ञान स्वरूप ज्योति का निश्चय करें तथा उस प्रेरक

Additional information

Weight 191 g
Dimensions 22 × 14 × 1 cm

Reviews

There are no reviews yet.

Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.