Sale!

अभ्यास और वैराग्य | Abhyas Aur Vairagya

Original price was: ₹75.00.Current price is: ₹70.00.

योग ग्रंथ | योग-साधना | आध्यात्मिक साहित्य
यह पुस्तक योग-साधना, मनोविज्ञान और आत्म-विकास के मार्ग में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी है।

9 in stock

Add to Wishlist
Add to Wishlist

Description

मानव जीवन की दो दिशाएँ हैं, एक बाहरी, दूसरी भीतरी। व्यक्तिजीवन, गृहस्थ-जीवन, सामाजिक जीवन और राष्ट्रियजीवन का बाहरी दिशा से सम्बन्ध है। ईश्वर, आत्मा और मन भीतरी दिशा के पदार्थ हैं, इन्हें ही भीतरी जीवन, आन्तरिक जीवन और आध्यात्मिक जीवन के नाम से कहते हैं। आध्यात्मिक जीवन मनुष्य का मौलिक जीवन है और वह बाहरी जीवन का ऐसा प्रतिष्ठापक एवं आधार है जैसे वृक्ष का मौलिक जीवन उसके बाहरी गुणों और भागों का प्रतिष्ठापक एवं आधार है। एक खेत है, जिसमें एक गन्ने का पौधा है, एक इमली का वृक्ष है, एक नीम का वृक्ष है, एक मिर्च का पौधा और एक धतूरे का पौधा है। गन्ने को जिधर से भी चूसो तो मीठा लगता है, इमली खाने में खट्टी, नीम कड़वा, मिर्च चर्परी और धतूरा विष। खेत एक मिट्टी भी वही और जल भी समान है, फिर यह स्वादों का भेद क्यों है ? इसका कारण उस वृक्ष का अपना मौलिक जीवन है। इस प्रकार किसी भी वृक्ष के बाहरी जीवन या बाहरी भाग चार हैं- शाखा, पत्ते, फूल और फल। खेत एक, मिट्टी एक, जल आदि एक होने पर भी उक्त गन्ने आदि के शाखा, पत्ते, फूल और फल बाहरी भाग अलग-अलग होते हैं। इनका भी कारण उनका अपना-अपना मौलिक जीवन है। वृक्ष के मौलिक जीवन के पदार्थ तीन हैं- बीज, मूल और अंकुर। जिस-जिस वृक्ष का जैसा-जैसा जीवन (बीज, मूल, अंकुर) होता है, वैसा-वैसा उस- उसका स्वाद बाहरी जीवन के भाग (शाखा, पत्ते, फूल, फल) होते हैं। इसी प्रकार मानव के मौलिक जीवन के भी तीन पदार्थ हैं- ईश्वर, आत्मा और मन। ये जैसे-जैसे मानव के होंगे वैसा-वैसा सुख-दुःख या बाहरी जीवन में विकास-ह्रास होगा। जिस प्रकार वृक्ष के बाहरी जीवन चार हैं- शाखा, पत्ते, फूल और फल, इसी प्रकार मानव के बाहरी जीवन चार हैं- व्यक्तिजीवन, गृहस्थजीवन, सामाजिकजीवन और राष्ट्रियजीवन। मौलिक जीवन है- मानव का आध्यात्मिक जीवन ।
मानव के बाहरी जीवन की इष्टसिद्धि या सुसिद्धि के लिए दो उपाय हैं-ज्ञान और यत्न या प्रयत्न। इसी प्रकार उसके आध्यात्मिक (भीतरी) जीवन की इष्टसिद्धि के लिए भी दो उपाय हैं। यद्यपि ज्ञान और यत्न या प्रयत्न ही, परन्तु वे आध्यात्म-क्षेत्र में प्रयुक्त हो जाने से तथा उत्कृष्ट भूमिवाले बन जाने से एवं फल की पराकाष्ठा के कारण क्रमशः वैराग्य और अभ्यास नाम से कहे जाते हैं। योगदर्शन के व्यासभाष्य में वैराग्य की व्याख्या करते हुए कहा है- “ज्ञानस्यैव पराकाष्ठा वैराग्यं, तच्च ज्ञानप्रसादमात्रम्”

Additional information

Weight 172 g
Dimensions 22 × 14 × 1 cm

Reviews

There are no reviews yet.

Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.