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Charak Samhita Complete 2022 edition(2 Vol. Set)

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Description

आयुर्वेद अनादि शाम्यत शास्त्र है अतः इसकी अभूत्वोत्पत्ति का उल्लेख नहीं मिलताः केवल अवबोध एवं उपदेश के द्वारा अभिव्यक्ति का निर्देश है। ब्रह्मा ने भी इसका स्मरण ही किया, इसे उत्पन्न नहीं किया- ‘ब्रह्मा स्मृत्वायुषो वेदम्’ । सुश्रुत ने भी कहा है कि सृष्टि के पूर्व ही ब्रायुर्वेद विद्यमान था। अतः यह स्पष्ट है कि आयुर्वेद अन्य वेदों के समानान्तर शास्त्र है। इसी कारण किसी ने स्पष्ट रूप से इसे उपवेद नहीं कहा। चरक ने इतना ही कहा कि अथर्ववेद में हमारी विशेष रुचि होनी चाहिए, क्योंकि उसमें चिकित्सा के अनेक तथ्य हैं। जहाँ इसे उपवेद कहा गया वहाँ भी मतभेद है कि यह ऋग्वेद का उपवेद है या अथर्ववेद का? ऐसी स्थिति में काश्यपसंहिता का वचन उपयुक्त प्रतीत होता है, जिसमें आयुर्वेद को पञ्चम वेद कहा गया अर्थात् सबके समानान्तर और सबके आगे, क्योंकि आयुर्वेद जीवन का विज्ञान है और जीवन रहने पर ही अन्य वेदों की सार्थकता है। जिस प्रकार पाँचों अंगुलियों में अंगुष्ठ की प्रधानता है उसी प्रकार वेदों में आयुर्वेद प्रधान है। सुश्रुत ने जो ‘उपाङ्ग’ कहा वहाँ ‘उप’ शब्द सामीप्यवाचक है, अनुगतिपरक नहीं। अथर्ववेद में चिकित्सा का वर्णन होने से आयुर्वेद उसके समीप है।

आयुर्वेद की वर्तमान उपलब्ध संहिताओं में चरकसंहिता प्राचीनतम मानी जाती है। वस्तुतः आत्रेय-सम्प्रदाय में चरकसंहिता और धान्वन्तर सम्प्रदाय में सुश्रुतसंहिता ये दो प्रतिनिधि ग्रन्य प्राचीनकाल से सर्वमान्य रहे हैं। इनकी प्रसिद्धि एवं लोकप्रियता के कारण अन्य संहिताएँ लुप्तप्राय हो गईं, जिनका परिचय टीकाओं में उद्धृत वचनों से ही प्राप्त होता है। वाग्भट ने भी इन्हीं दो संहिताओं को अपनी रचना का आधार बनाया है, जिसका मुख्य उद्देश्य कायचिकित्सा एवं शल्यतन्त्र के सम्प्रदायों का समन्वय कर आयुर्वेद के समष्टि रूप को प्रस्तुत करना है।

आज की चरकसंहिता वही नहीं है जो प्राचीन काल में थी। इसका मूल रूप अग्निवेश-तन्त्र था जिसे पुनर्वसु आत्रेय के योग्यतम शिष्य अग्निवेश ने प्रस्तुत किया था। इसमें प्रश्नोत्तर शैली में गुरु (आत्रेय) के उपदेश निबद्ध हैं। आत्रेय के छः शिष्य थे, किन्तु सबमें अग्निवेश योग्यतम था- ‘बुद्धेर्विशेषस्तत्रासीत्’। इसे ऋषियों की सभा में उपस्थित किया गया जिसने इस पर प्रामाणिकता की मुहर लगाई।

मूल अग्निवेश-तन्त्र आकार में अल्प ही रहा होगा तथापि इसे कायचिकित्सा का प्रमाणभूत स्रोत माना जाता था। ‘नावनीतकम्’ में चरक का नहीं अग्निवेश का ही उल्लेख है। चरक ने जब इसको अपने भाष्य से परिवृंहित कर इसे प्रतिसंस्कृत किया तब यह ‘चरकसंहिता’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सुश्रुतसंहिता आदि का नाम प्रतिसंस्कार के बाद भी नहीं बदला, किन्तु चरक कृत प्रतिसंस्कार इस अर्थ में विशिष्ट है कि उसने अपना प्रभुत्व स्थापित कर मूल प्रणेता को ही तिरोहित कर दिया। चरकसंहिता का पुनः प्रतिसंस्कार दृढबल के द्वारा गुप्तकाल में सम्पन्न हुआ। इस प्रकार अद्यतन चरकसंहिता चरक तथा दृढबल द्वारा परिबृहित एवं प्रतिसंस्कृत अग्निवेशतन्त्र

है। चरक के द्वारा प्रतिसंस्कृत होने का उल्लेख चक्रपाणिदत्त ने भी किया है। साथ ही पि के साथ चरक की एकात्मता भी कही गई है। उस समय प्रबुद्ध वर्ग में वह मान्यता प्रचलित कि योगदर्शन, महाभाष्य और चरक के प्रतिसंस्कर्ता एक ही थे जो नाग के अवतार थे और सिकार इन तीन कृतियों से मानसिक, वाचिक तथा शारीरिक दोषों का निवारण किया। बायुर्वेदवीका व्याख्या के उपक्रम भाग में सन्निहित वह श्लोक इस प्रकार है- ‘पातञ्जलमहाभाष्य करवयतिसम्मूर्त । मनोवाक्कायदोषाणां हर्षेऽहिपतये नमः’ ।।

चरकसंहिता कायचिकित्सा का तो उपजीव्य ग्रन्य है ही, दार्शनिक एवं सैद्धान्तिक विवर के कारण आयुर्वेद का भी प्रामाणिक मूल स्रोत है। आयुर्वेदीय चिकित्सा को वैज्ञानिक घरावर पर प्रतिष्ठित करने का श्रेय चरक को ही जाता है, जिसने युक्तिव्यपाश्रय चिकित्सा को सर्वोपदशर स्थान दिया।

सर्वग्राहिता एवं लोकप्रियता के कारण प्राचीन काल से वर्तमान काल तक चरकसंहिता पर अनेक व्याख्याएँ लिखी गईं और विभिन्न भाषाओं में उसके अनुवाद भी हुए। संस्कृत में इसकी अन्तिम व्याख्या कविराज योगीन्द्रनाथ सेन द्वारा प्रणीत तथा इस शताब्दी के लगभग प्रथम चरण में प्रकाशित हुई। हिन्दी में भी अनेक व्याख्याएँ प्रकाशित हुई, इस श्रृंखला में प्रस्तुत व्याख्या नवीनतम है।

स्व० डॉ० विद्याधर शुक्ल आयुर्वेद जगत् के प्रख्यात मनीषी थे जिन्होंने अनेक ग्रन्थ लिये और चिरकाल तक अध्यापन कार्य किया। इनके द्वारा प्रस्तुत व्याख्या में अनेक सारणियों द्वारा विषय को सरल एवं विशद बनाने का प्रयत्न किया गया है। इस उत्कृष्ट अवदान के लिए लेखड आयुर्वेद जगत् की बधाई के पात्र हैं। उनके जीवनकाल में यह महत्त्वपूर्ण कृति प्रकाश में नवा सकी इसका सभी को खेद है। आशा है, इस व्याख्या का जिज्ञासुजन में समादर होगा।

Additional information

Weight 2990 g
Dimensions 23 × 15.5 × 9 cm

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