Shri Satyanarayan vrat katha
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Description
सत्यनारायणव्रत-कथा पौराणिक गल्पशास्त्र का श्रेष्ठ नमूना है। यह कथा ऐतिहासिक नहीं अपितु कवि-कल्पना है। कवि किसी तथ्य को मन और मस्तिष्क में बैठाने के लिए कोई केन्द्रबिन्दु निर्धारित करता है, फिर अपनी कल्पना की तूलिका से उसमें रहस्य, रोमांच और औत्सुक्य का समावेश करता है। कहानी में तथ्य तो होता है, परन्तु नाम, स्थान आदि प्रायः कल्पित ही होते हैं। कभी-कभी ये नाम एवं स्थान सत्य और ऐतिहासिक भी होते हैं, परन्तु कहानी कल्पित ही होती है। सत्यनारायणव्रत-कथा अपने ढंग की एक अनूठी कथा है। वैदिक धर्म में मानव- समाज को चार भागों में विभाजित किया गया है-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। इन सभी वर्णों में सत्य का व्यवहार होना चाहिए। इस कथा में चारों वर्णों का एक-एक प्रतिनिधि लेकर कथानक की रचना की गई है। यह कथा सभी वर्णों को सत्य पर दृढ़ रहने का उपदेश और सन्देश देती है। हम अपने जीवन में सत्य को अपनाएँ। आओ, हम प्रभु से प्रार्थना करें- असतो मा सद् गमय । – शत० १४।४।१।३० प्रभो! मुझे असत्य से सत्य की ओर ले-चल। यह पुस्तक लगभग दो वर्ष पूर्व लिखी गई थी।
Additional information
Weight | 106 g |
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Dimensions | 18 × 12 × 1 cm |
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