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Rishi Dayanand dwitiya Janm Shatabdi visheshank 1-2

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Description

उन्नीसवीं शती के प्रसिद्ध भारतीय वेद- विद्वानों और वेदभाष्यकारों में स्वामी दयानन्द का स्थान सर्वोच्च है। हम इस शोध-विनिबन्ध में स्वामी दयानन्द से परवर्ती कतिपय भारतीय वेदव्याख्याकारों की वैदिक दृष्टि, भाष्य-पद्धति वा वैदिक मान्यताओं पर प्रकाश डालना चाहते हैं, जो आर्यसमाजी वेद-भाष्यकारों की परिधि में नहीं हैं अथवा जो स्वामी दयानन्द सरस्वती के दृढ़ मतानुयायी नहीं हैं, उन वेद-व्याख्याकारों में से मात्र पाँच वेद-विद्वानों वा वैदिक मनीषियों की वैदिक दृष्टि, वेद-व्याख्या की पद्धति तथा वैदिक विचारधाराओं की संक्षिप्त विवेचना यहाँ की जाएगी। उन पाँच वेदव्याख्याकारों के सुप्रथित नाम ये हैं –
१. पण्डित सत्यव्रत सामश्रमी
२. पण्डित श्रीपाद दामोदर सातवलेकर
३. पण्डित मधुसूदन ओझा
४. योगी श्री अरविन्द
५. श्री पण्डित वासुदेवशरण अग्रवाल
पण्डित सत्यव्रत सामश्रमी
(जन्म २८ मई १८४६ ई० निधन १
जून १९११ ई०)
पण्डित सत्यव्रत अपने पिता की कामना के अनुरूप ही अद्वितीय वैयाकरण और सामग बने। स्वयं ‘सामश्रमी’ और उनके भ्राता हितव्रत ने ‘सामाध्यायी’ की उपाधि पाई। काशी में रहकर स्वामी विश्वरूपजी से भाष्यान्त व्याकरण पढ़ा, मीमांसा का अनुशीलन किया। पण्डित नन्दराम त्रिपाठी, (गुजराती) से सम्पूर्ण सामगान सहित सामवेद का अध्ययन किया। अपनी प्रतिभा, अद्भुत ऊहा एवं शास्त्रीय पाण्डित्य के कारण सुप्रथित- कीर्त्ति हुए। नवद्वीप (बङ्गाल) में जाकर ऐसा पाडित्यपूर्ण शास्त्रार्थ किया कि उससे मुग्ध होकर एक वृद्ध पण्डित ने अपनी एक पोती का पाणिग्रहण ‘सामश्रमी’ से कर दिया और दूसरी का ‘सामाध्यायी’ से। काशी में रहकर सामश्रमी जी ने ‘प्रत्नकम्रनन्दिनी’ नामिका एक संस्कृत पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इस पत्रिका ने उनकी निर्भय गवेषणा और प्रौढ़ प्रज्ञा को भारतवर्ष तथा यूरोप में प्रसिद्ध कर दिया। इस पत्रिका के प्रति उनकी समर्पण भावना के विषय में श्री पण्डित चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी ने लिखा है-

Additional information

Weight 377 g
Dimensions 24 × 17 × 2 cm

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