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Panch Mahayagya Vidhi

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Description

*ओ३म्*
ग्रंथ सन्ध्योपासनादिपञ्चमहायज्ञविधिः
यह पुस्तक ‘नित्यकर्मविधि’ का है। इसमें ‘पञ्चमहायज्ञ’ का विधान है। जिनके ये नाम हैं कि ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, भूतयज्ञ और नृयज्ञ । उनके मन्त्र, मन्त्रों के अर्थ और जो-जो करने का विधान लिखा है, सो-सो यथावत् करना चाहिये । एकान्त देश में अपने आत्मा मन और शरीर को शुद्ध और शान्त करके उस-उस कर्म में चित्त लगाके तत्पर होना चाहिये । इन नित्य कर्मों के फल ये हैं कि – ज्ञान प्राप्ति से आत्मा की उन्नति और आरोग्यता होने से शरीर के सुख से व्यवहार और परमार्थ कार्यों की सिद्धि होना । उस से धर्म अर्थ काम और मोक्ष ये सिद्ध होते हैं। इनको प्राप्त होकर मनुष्यों को सुखी होना उचित है ।
[ १ – अथ प्रथमो ब्रह्मयज्ञः सन्ध्योपासनम् ]
अथ तेषां प्रकारः । तत्रादौ ब्रह्मयज्ञान्तर्गतसन्ध्याविधानं प्रोच्यते । तत्र सन्ध्याशब्दार्थः ‘सन्ध्यायन्ति सन्ध्यायते वा परब्रह्म यस्यां सा सन्ध्या ।’ तत्र रात्रिन्दिवयोः सन्धिवेलायामुभयोस्सन्ध्ययोः सर्वैर्मनुष्यैरवश्यं परमेश्वरस्यैव स्तुतिप्रार्थनोपासनाः कार्याः ।
आदौ शरीरशुद्धिः कर्त्तव्या सा बाह्या जलादिना, आभ्यन्तरा रागद्वेषासत्यादित्यागेन । अत्र प्रमाणम् –
अद्भिर्गात्राणि शुध्यन्ति, मनः सत्येन शुध्यति ।
विद्यातपोभ्यां भूतात्मा, बुद्धिर्ज्ञानेन शुध्यति ॥
इत्याह मनुः अ० ५ । श्लोक १०९ ।।

Additional information

Weight 135 g
Dimensions 18 × 12 × 1 cm

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