Mahamahopadhyay Pandit yudhishthir Mimansak Janmshatabdi visheshank
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पण्डित युधिष्ठिर जी मीमांसक के जन्मशती वर्ष के उपलक्ष्य में उनके पुण्य स्मरणों को दुहराते हुए
Description
वेदवाणी के बासठवें वर्ष का शुभारम्भ प्रातःस्मरणीय आदर्शभूत हमारे पूर्वज पण्डित युधिष्ठिर जी मीमांसक के जन्मशती वर्ष के उपलक्ष्य में उनके पुण्य स्मरणों को दुहराते हुए, स्वन्यूनताओं को दृष्टिगत रखकर उनसे कुछ सीखते हुए हो रहा है। यह हमारे लिए श्रद्धा के साथ-साथ गर्व की बात भी है। क्योंकि अनेक समाजों/सभाओं को पण्डित जी का साक्षात् सान्निध्य प्राप्त हुआ था अतः इस वर्ष सभी यत्किञ्चित् रूप में अपने श्रद्धास्पद के लिए श्रद्धासुमन अर्पित कर अपना सौभाग्योदय मान रहे हैं।
२२ सितम्बर सन् २००८ को दिनेश विद्यार्थी जी (फरीदाबाद) पण्डित जी के ज्येष्ठ पुत्र श्री बृहस्पति शर्मा (फरीदाबाद) के घर पण्डित जी का जन्मशती वर्ष (एक वर्ष पूर्व ही) मानते हुए यज्ञ करने पहुँचे, तब बृहस्पति जी ने कहा कि अभी तो जन्मशती पूर्ण होने में पूरा एक वर्ष बाकी है और वैसे भी क्योंकि पण्डित जी का अधिक सम्पर्क रामलाल कपूर ट्रस्ट के साथ रहा अतः जन्मशती मनाने का प्रथम अधिकार ट्रस्ट का है न कि हमारा। बृहस्पति जी ने जीवनराम जी को दूरभाष कर सूचित किया। तब से इस विशेषाङ्क तथा कार्यक्रम को मनाने की नींव पड़ी।
वास्तव में महापुरुषों का साक्षात् दर्शन, स्मरण एवं उनके द्वारा लिखित ग्रन्थों का स्वाध्याय हमें हमारी न्यूनताओं का दर्शन कराकर कुमार्ग से सुमार्ग की ओर प्रेरित करता है। अतः यह कार्य हमें निरन्तर करते रहना चाहिए।
विशेषाङ्क को हमने पूर्वसूचनानुसार दो भागों में विभक्त किया है। प्रथम भाग में पण्डित जी से सम्बन्धित संस्मरणों एवं द्वितीय भाग में वेद वेदाङ्गों से सम्बन्धित अनुसन्धानात्मक महत्त्वपूर्ण लेखों का संग्रह किया है। कृपालु विद्वान् लेखकों ने हमारे अनुरोध पर
पर्याप्त लेख प्रेषित कर हमें स्वकृपासागर में आकण्ठ आप्लावित किया है। आशा है यह कृपा आगे भी इसी प्रकार धरसती रहेगी।
प्रथम भाग में मन्त्रव्याख्यान के पश्चात् २६ विद्वान् लेखकों ने पण्डित जी से सम्बन्धित स्वीय अनुभवों को स्मृत किया है। हालाँकि कुछेक घटनाओं का पुनरावर्तन भी हुआ है लेकिन चूँकि प्रत्येक विद्वान् का प्रतिपादन-प्रकार अपना अनूठा है, अतः वह संस्मरण प्रतिस्थान नया सा ही प्रतीत होता है।
पण्डित जी का व्यक्तित्व अत्यन्त विस्तृत था, एक अगाध समुद्र के सदृश गम्भीर था। लेखकों ने उन्हें ‘वैदिक आर्ष परम्परा के समर्पित साधक एवम् आराधक’, ‘वैयाकरण मूर्धन्य’, ‘आर्यजाति की एक अद्भुत विभूति’, ‘विद्वद् शिरोमणि एवं यथार्थ मार्गद्रष्टा’, ‘संयमित पत्रलेखक’, ‘महान् वेदशास्त्रज्ञ विद्वान्’, ‘महान् अध्येता’, ‘विपश्चित्तम’, ‘व्यावहारिक एवं दयार्द्रहृदय’, ‘यथार्थ न्यायकारी’, ‘कुशल उपदेष्टा’, ‘पंक्तिपावन वैयाकरण’, ‘विद्यामूर्ति तपःपूत’, ‘शास्त्रीय सङ्गति के अद्भुत शिल्पी’, ‘अद्भुत साहसी सुविद्वान्’, ‘यथार्थ आर्यवीर’, ‘एषणात्रयमुक्त विद्वान्’, ‘आधुनिक पाणिनि’, ‘वैदिक वाङ्मयाकाश में जाज्वल्यमान मार्तण्ड’, ‘आर्षपरम्परा के अद्वितीय भास्कर’, ‘उत्कृष्ट संस्कारसम्पन्न विद्वच्छिरोमणि’, ‘हमारे प्रेरणास्त्रोत’, ‘वेदवेदाङ्गवित् वैदिक गवेषक’, ‘बड़े विद्याव्यसनी’, ‘वैदिक वाङ्मय के पुरोधा’ आदि रूपों में स्मृत किया है। पण्डित जी के व्यक्तित्व का प्रत्येक अंश प्रेरणास्पद रहा है।
पण्डित युधिष्ठिर मीमांसक यह नाम वस्तुतः किसी परिचय की आवश्यकता नहीं रखता क्योंकि
यदि सन्ति गुणाः पुंसां विकसन्त्येव ते स्वयम्। न हि कस्तूरिकामोदः शपथेन विभाव्यते ।।
Additional information
Weight | 346 g |
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Dimensions | 24 × 17 × 1 cm |
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