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Vedvani hirak Jayanti visheshank

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Description

इस अङ्क के साथ वेदवाणी अपनी वेद-प्रचार यात्रा के पिचहत्तर वर्ष पूर्ण कर छिहत्तरवें वर्ष में प्रवेश कर रही है। पिचहत्तर वर्षीय वेदवाणी के परिवार-जनों के लिए निश्चित ही यह हर्ष, गर्व तथा गौरव का विषय है। इन विगत पिचहत्तर वर्षों में वेदवाणी के सम्पादकों, सञ्चालकों, व्यवस्थापकों, लेखकों तथा पाठकों की तीन-तीन, चार-चार पीढ़ियाँ व्यतीत हो चुकी हैं। कुछेक दीर्घजीवी पाठक, लेखक ऐसे भी हैं जो वेदवाणी के आरम्भ से लेकर वर्त्तमान तक वेदवाणी के साथ संयुक्त हैं।
वेदवाणी का प्रारम्भ सन् १९४८ में अगस्त- सितम्बर (वि० सं० २००५, भाद्रपद) से हुआ। इसके प्रथम सम्पादक थे श्री महेशप्रसाद मौलवी आलिम फ़ाजिल (अवैतनिक सम्पादक)। उनके सहायक थे श्री भानुचरण आर्षेय सिद्धान्तशास्त्री। द्वितीय अङ्क में श्री आनन्द स्वरूप बी०ए० का नाम प्रबन्ध सम्पादक के रूप में प्रदत्त है। तृतीय अङ्क में उक्त दोनों विद्वानों के अतिरिक्त आनन्द स्वरूप के स्थान पर सह सम्पादक के रूप में श्री रामाधार शास्त्री न्यायतीर्थ का नाम भी संयुक्त हुआ। षष्ठ अङ्क में उल्लिखित चारों नाम अङ्कित हैं। सप्तम अङ्क से आगे रामाधार शास्त्री का नाम नहीं है। इसी वर्ष के बारहवें अङ्क (अगस्त १९४९ ई०, श्रावण २००६ वि० सं०) के आवरण पृष्ठ चार पर ‘शुभ सूचना’ शीर्षक के अन्तर्गत निर्दिष्ट है- “प्रेमी पाठकों के लिए यह सूचना देते हुए हर्ष होता है कि ईश कृपा से इस अङ्क के साथ ‘वेदवाणी’ प्रथम वर्ष समाप्त होता है। वयोवृद्ध पूज्य प्रोफेसर महेश प्रसाद जी वेदवाणी के संरक्षक बने ही रहेंगे, किन्तु अब नवीन वर्ष से हमारी प्रार्थना पर वेदों के सुप्रसिद्ध विद्वान् अखिल भारतीय विद्वत्- सम्मेलन कलकत्ता के सभापति, पद-वाक्य- प्रमाणज्ञ, त्यागमूर्त्ति श्री पण्डित ब्रह्मदत्त जिज्ञासु जी ने वेदवाणी का सम्पादक होना स्वीकार
कर लिया है।”
वर्ष २ अङ्क १ (सितम्बर १९४९ ई०) के आवरण पृष्ठ १ पर- प्रधान सम्पादक- श्री ब्रह्मदत्त जिज्ञासु (अवैतनिक), सम्पादक-प्रो० महेश- प्रसाद (अवैतनिक), स० सम्पादक – श्री क० च० ‘राकेश’ जी (अवैतनिक), व्यवस्थापक- आनन्द स्वरूप बी०ए० लिखित है। इस द्वितीय वर्ष के अन्त तक सम्पादकों का उल्लेख इसी रूप में रहा।
वर्ष ३, अङ्क १ (सितम्बर १९५० ई०) में- प्रधान सम्पादक – श्री ब्रह्मदत्त जिज्ञासु, अवैत- निक, सम्पादक- श्री आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री, एम०ए०, काव्यतीर्थ तथा व्यवस्थापक – श्री आनन्द स्वरूप बी०ए० का उल्लेख है। द्वितीय अङ्क से वीरेन्द्र शास्त्री जी का नाम हट गया। चतुर्थ अङ्क (फरवरी, १९५१ ई०) में- सम्पादक – श्री पण्डित ब्रह्मदत्त जी जिज्ञासु तथा व्यवस्थापक- युधिष्ठिर मीमांसक का उल्लेख है। इसी अङ्क के पृष्ठ-संख्या २६ पर ‘ट्रस्ट का नया कार्य – ‘वेदवाणी का प्रकाशन’ शीर्षक के अन्तर्गत सूचना दी गई है कि- ” ट्रस्ट के अधिकारियों की चिरकाल से इच्छा रही कि ट्रस्ट की ओर से एक मासिक या त्रैमासिक पत्रिका प्रकाशित की जावे, जिसके द्वारा वैदिक सभ्यता और वैदिक संस्कृति तथा वेद और उसके वाड्मय के सम्बन्ध में फैली हुई भ्रान्तियों को दूर करने और उनके शुद्ध स्वरूप को भारत की जनता और भारत से बाहर पहुँचाने में सहायता मिले। इस कार्य के लिए ट्रस्ट को अनेक महानुभावों ने भी समय-समय पर प्रेरणा की, किन्तु कई कारणों से यह इच्छा अब तक कार्य रूप में परिणत न हो सकी।
‘वेदवाणी’ नाम की मासिक पत्रिका लगभग दो वर्ष से काशी से प्रकाशित हो रही थी। जिसका लक्ष्य भी प्रायः यही रहा है। किन्हीं परिस्थितियों के

Additional information

Weight 307 g
Dimensions 24 × 17 × 1 cm

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