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Shri Ashtavakra Gita

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ज्ञान कैसे प्राप्त होता है? मुक्ति कैसे होगी? और वैराग्य कैसे प्राप्त होगा ये तीन शाश्वत प्रश्न हैं जो हर काल में आत्म-अनुसंधानियों द्वारा पूछे जाते रहे हैं। राजा जनक ने भी ऋषि अष्टावक्र से ये ही प्रश्न किये थे। ऋषि अष्टावक्र ने इन्हीं तीन प्रश्नों का संधान राजा जनक के साथ संवाद के रूप में किया है जो अष्टावक्र गीता के रूप में प्रचलित है। ये सूत्र आत्मज्ञान के सबसे सीधे और सरल वक्तव्य हैं। इनमें एक ही पथ प्रदर्शित किया गया है जो है ज्ञान का मार्ग। ये सूत्र ज्ञानोपलब्धि के, ज्ञानी के अनुभव के सूत्र हैं। स्वयं को कंवल जानना है-ज्ञानदर्शी होना, बस। कोई आडम्बर नहीं, आयोजन नहीं, यातना नहीं, यत्न नहीं, बस हो जाना वही जो हो। इसलिए इन सूत्रों की केवल एक ही व्याख्या हो सकती है, मत मतान्तर का कोई झमेला नहीं है; पाण्डित्य और पोंगापंथी की कोई गुंजाइश नहीं है। अध्यात्मिक ग्रंथों में भगवद्गीता, उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र के समान अष्टावक्र गीता अमूल्य ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में ज्ञान, वैराग्य और मुक्ति का सविस्तार वर्णन है। यह विश्व धरोहर है और इससे समस्त भ्रमों का निवारण हो जाता है।

Additional information

Weight 460 g
Dimensions 22 × 14 × 3 cm

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