Srimadbhagavadgita Ek adhyayan
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श्रीमद्भगवद्गीता महाभारत ग्रन्थ का एक छोटा-सा अंश है। महाभारत के भीष्म पर्व के पच्चीसवें अध्याय से बयालीसवें अध्याय तक के अठारह अध्याय गीता कहलाते हैं। यूं तो अन्य कई अंश भी गीता के नाम के साथ जोड़ दिये गए हैं; जैसे विदुर गीता आदि। परन्तु उक्त गीता ही भगवद्गीता के नाम से विख्यात है।
महाभारत चन्द्रवंशियों के दो परिवारों में हुए युद्ध का वृत्तान्त है। इस युद्ध का वृत्तान्त लिखते हुए ग्रन्थ के रचयिता ने जहाँ पूर्ण चन्द्रवंश का इतिहास लिखने का यत्न किया है, वहाँ इसमें उन घटनाओं के कारण और उनके परिणाम लिखने का भी प्रयास किया है।
फलतः महाभारत अन्य पुराणों की भाँति इतिहास की सीमा को पार कर गया है। इतिहास केवल घटनाओं अथवा काल की गतिविधि लिखने का नाम है। जहाँ किसी घटना का कारण और उसके परिणाम का उल्लेख आया, वहाँ वह वक्तव्य इतिहास से कुछ अधिक माना जाता है। इसका कारण यह है कि किसी घटना अथवा परिस्थिति के कारण अथवा उससे उत्पन्न परिणामों के अन्वेषण में वस्तुस्थिति के अतिरिक्त कल्पना का सहारा लेने की आवश्यकता अनुभव होती है।
वर्तमान युग की घटनाओं के विषय में भी यही कहा जा सकता है। जैसे स्वराज्य-प्राप्ति आन्दोलन में महात्मा गांधी ने अनेक ऐसे कार्य किये और वक्तव्य दिये हैं कि जिनका जवाहरलाल नेहरू ने अक्षरशः समर्थन किया। इस पर भी दोनों की विचारधारा में आकाश-पाताल का अन्तर रहा है। नेहरू की, कम्युनिस्ट पद्धति में रुचि को जानते हुए भी, उन्हें कांग्रेस का प्रधान बनाने में गांधीजी सहायक होते रहे। इसके विपरीत गांधीजी अपने को हिन्दू कहते हुए भी तिलक, मदनमोहन मालवीय, लाजपतराय इत्यादि नेताओं का विरोध करते रहे। यह सब वृत्तान्त इतिहास है; परन्तु जब इस घटनाचक्र के कारण और परिणामों का उल्लेख किया जाता है तो हम कल्पना के क्षेत्र में जा पहुँचते हैं। ऐसे लेख इतिहास की सीमा को पार कर पुराण के क्षेत्र में जा पहुँचते हैं।
Additional information
Weight | 400 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
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