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Presentation of Vedic Literature Mimamsa Darshanam

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मीमांसा दर्शन भारतीय दर्शन की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जिसे विशेष रूप से वेदों की व्याख्या और कर्मकांड के सिद्धांतों पर आधारित माना जाता है। इस दर्शन के प्रवर्तक (संस्थापक) माने जाते हैं महर्षि जैमिनि। महर्षि जैमिनि का योगदान: मीमांसा सूत्र: महर्षि जैमिनि ने ‘मीमांसा सूत्र’ की रचना की, जिसे पूर्वमीमांसा या केवल मीमांसा भी कहते हैं। यह ग्रंथ वेदों की व्याख्या और वेदों के कर्मकांड खंड पर आधारित है। कर्मप्रधान दर्शन: मीमांसा दर्शन का मुख्य उद्देश्य धर्म की प्रकृति और स्वरूप को समझना है। जैमिनि के अनुसार धर्म वेदविहित कर्मों में निहित है। श्रुति का सर्वोच्च स्थान: इस दर्शन में श्रुति (वेद) को सर्वोच्च प्रमाण माना गया है, और विश्वास किया गया है कि वेद अपौरुषेय (अमानव रचित) और नित्य हैं। ईश्वर का गौण स्थान: मीमांसा दर्शन में ईश्वर की भूमिका महत्वपूर्ण नहीं मानी गई है, बल्कि कर्म और फल के नियम को ही प्राथमिकता दी गई है। मीमांसा दर्शन की विशेषताएँ: न्याय और तर्क पर आधारित व्याख्या। वेदों के यज्ञ, अनुष्ठान और कर्मकांड की वैज्ञानिक व्याख्या। धर्म का अर्थ ‘वेदविहित कर्म’ से लिया गया है। निष्कर्ष: महर्षि जैमिनि ने मीमांसा दर्शन के माध्यम से वेदों की व्यावहारिकता और अनुष्ठानों की उपयोगिता को सिद्ध करने का प्रयास किया। वेदों की स्थायित्व और कर्म के सिद्धांत को प्रतिष्ठित करने में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है।

Additional information

Weight 1200 g
Dimensions 22 × 14 × 6 cm

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