Vaisheshik Darshanm
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पुरुषार्थप्रदातारं विद्धम्मामसरन । बन्दै गुरुपद्वन्द्वमवाकमनसगोचरम् ।।
मैं अपने द्वारा सम्मादित सविवरण प्रशस्त की पदवी भूमिका में भाध्यकार प्रशस्तदेवाचार्य के मन्तब्य कोष्टकर चुका हूँ। पदसं सन् १९२३ में चौलम्बा संस्कृत पुस्तकालय से छा पुरा है। उस संस्करण में मैंने एक संकलनांक देकर यद में उल्लेख किया है कि प्रशस्तदभाग्य में वैशेषिक सूत्रों का साक्षात् सम्बन्ध नहीं है, बरन् वैशेषिक मतों का सार भाष्य में प्रतिपादित है। जिज्ञासुओं को वद संस्करण अवश्य पठनीय है।
प्रस्तुत हिन्दी संस्करण में प्रशस्तपादभाष्य की हिन्दी व्याख्या करते समय मैंने यह ध्यान रखा है कि माध्य के प्रतिपद तथा प्रतिवाक्य का माब सुस्पष्ट हो जाय । यद्यपि आज की राष्ट्रभाषा की अपेक्षा मेरी माषा की शैली प्राचांन है तथापि भावाश्रोध का जहाँ तक प्रश्न है. मुझे विश्वास है कि उसमें दोष कम होंगे। ग्रन्थ लगाने के लिये यद व्याख्या छात्रों तथा जिज्ञासुओं को बड़ी उपयोगी तथा सहायक सिद्ध होगी।
मेरे बार्द्धक्यजन्य असामर्थ्यवश कतिपय त्रुटियों का रह जाना सम्भव है, आशा है सुषीजन सुधारकर पढ़ लेंगे तथा लाभान्वित होगे ।
इस ग्रन्थ के स्वत्वाधिकारी, चौखम्बा संस्थान के सञ्चालक श्रेष्ठिवर्य को हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ जिनकी ऐसे कायों के प्रति सदा दी विशेष आस्था रही है।
Additional information
Weight | 400 g |
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Dimensions | 22 × 13 × 2 cm |
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