Sale!

Nyay darshanam

Original price was: ₹450.00.Current price is: ₹405.00.

महर्षि यास्क ने अपने निरुवत में एक इतिहास प्रस्तुत किया है जो इस प्रकार है-

पूर्वकाल में ऋषियों के न रहने पर मनुष्य देवजनों के पास गये और बोले-‘को न ऋषिर्भविष्यति ?’ अब हमारा कौन ऋषि होगा? तब देवों ने उन्हें तर्क-ऋषि प्रदान किया ‘तेभ्य एतं तर्कमृषि प्रायच्छन्’ (निरुक्त १३/१२)। तर्क को लक्ष्य करके भगवान् मनु ने कहा है-

यस्तकेंणानुसंधत्ते स धर्म वेद नेतरः

। – मनु० १२/१०६ अर्थात् जो तर्क के द्वारा अनुसन्धान करता है वही धर्म के तत्त्व को जानता है, अन्य नहीं ।

यहाँ तर्क से अभिप्राय है प्रमाणों के अनुसार सत्य का निश्चय करना । प्रमाण ही न्याय का देवता अथवा मुख्य प्रतिपाद्य है। लोक में उसी को तर्कविज्ञान या तर्कशास्त्र भी कहते हैं। जब तक वादी प्रतिवादी होकर वाद न किया जाय तब तक सत्यासत्य का निर्णय नहीं हो सकता। इसीलिए लोकोक्ति बन गई है- ‘बादे वादे जायते तत्त्वबोधः’ । अपनी इस शक्ति के कारण न्यायशास्त्र विभिन्न नाम से विभिन्न रूपो में देश-काल की सीमाओं का उल्लंघन कर विश्व भर में लोग ब्यवहार में भी उतना ही उपयोगी हो गया है जितना धार्मिक अथवा दार्शनिक ऊहापोह में। अनुमान की पूरी प्रक्रिया (जिसमें प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय तथा निगमन पाँचों अवयव शामिल हैं) का आधार यही दर्शन है। समस्त दार्शनिक, धार्मिक तथा व्यावहारिक ऊहापोह का नियमन न्यायदर्शन के सिद्धान्तों के द्वारा ही होता है। अन्यथा चिरकाल तक मन्थन करते रहने पर भी तत्त्वार्थ-नवनीत की प्राप्ति नहीं होती ।

न्याय और वैशेषिक दर्शन एक-दूसरे के पूरक हैं। जहाँ वैशेषिक पदार्थों और उनके धर्मों का उल्लेख, संगमन एवं स्वरूप का विवेचन करता है, वहाँ न्यायदर्शन उन पदार्थों एवं धमों के जानने और समझने की प्रक्रिया का निरूपण करता है।

यास्क हरेक साधारण मनुष्य के तर्क को तर्क नहीं मानते। वे ऐसे मनुष्य के ऊहापोह को ही ऋषि समझते हैं जो अनेक विद्याओं में पारंगत हो, बहुश्रुत हो, तपस्वी हो और प्रकरणानुसार चिन्तन करनेवाला आप्तपुरुष हो ।

Additional information

Weight 815 g
Dimensions 22 × 14 × 4 cm

Reviews

There are no reviews yet.

Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.