Antim Hindu Samrat Hemchandra Vikramaditya
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मुस्लिम आक्रमण और परतन्त्रता के काल में भारतवासियों में अनेक बीर उभरकर सामने आये, जिन्होंने देश को परतन्त्रता से बचाने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी। उन्हीं रणबांकुरों में से एक वीर था-हेमचन्द्र विक्रमादित्य। वीर हेमचन्द्र ने अपने जीवन में बाईस युद्ध लड़े, जिनमें से अन्तिम युद्ध मुगल शाहजादा अकबर के साथ पानीपत (हरियाणा) के मैदान में हुआ। यदि उस युद्ध का विजेता सौभाग्य से हेमचन्द्र होता तो भारत की परतन्त्रता पर तभी विरामचिह्न लग जाता, किन्तु दुर्भाग्य यह रहा कि विशाल मुस्लिम सेना के समक्ष भारत के अधिकांश योद्धाओं को समय-समय पर पराजय का मुँह देखना पड़ा। परिणामस्वरूपं भारत लम्बी गुलामी के गर्त में प्रविष्ट हो गया। उस गुलामी से मुक्ति सन् १९४७ में लगभग आठ सौ वर्षों का कलंकित जीवन जीने के बाद मिली, वह भी अनेक बलिदानों, यातनाओं, जेलयात्राओं के बाद इस आजादी का श्रेय उन सब वीरों को जाता है जिन्होंने देश को परतन्त्रता से बचाने के लिए बलिदान दिया अथवा कष्ट सहे। ऐसे वीरों के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करने का सही उपाय है उनके शौर्यपूर्ण चरित्र का पठन-पाठन करना और उनकी कीर्ति को अमर करना।
वीर हेमचन्द्र विक्रमादित्य रेवाड़ी (हरियाणा) के निवासी थे और तत्कालीन परम्पराओं के विपरीत ‘बनिया’ समुदाय से सम्बन्ध रखते थे, किन्तु उनमें वीरता की भावनाएँ क्षत्रियों से भी बढ़-चढ़ कर थी। मुस्लिम तथा उनके पक्षधर इतिहासकारों ने उस महान् वीर को ‘हेमू बकाल’ कहकर तिरस्कृत करने की कोशिशें की हैं, किन्तु आज का भारतीय पाठक इतिहासकारों की उस तुच्छ मानसिकता को भलीभांति समझता है।
Additional information
Weight | 333 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
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