Shrimad Valmiki Ramayanam Balakandam Aaranya Kishkindhakanadatam Ayodhyakandam Sundarkandam Yuddh-kandam (with Hindi translation)
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महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण इतिहास-प्रधान आद्य महाकाव्य है। इस महाकाव्य में महर्षि वाल्मीकि ने मर्यादा पुरुषोत्तम रघुकुल-तिलक महाराज रामचन्द्र के दिव्य एवं पावन चरित्र का वर्णन किया है। यद्यपि यह काव्य ग्रन्थ है, और काव्य होने से इसमें अतिशयोक्ति आदि अलङ्कारों का होना स्वाभाविक है, परन्तु महर्षि वाल्मीकि ने इसका प्रयोग बहुत मर्यादापूर्वक उतना ही किया है, जिससे इस ग्रन्थ का इतिहासत्व नष्ट न हो जावे। इस दृष्टि से यह महाकाव्य मूलतः इतिहास-ग्रन्थ है। वाल्मीकि ने इस महाकाव्य का निर्माण महाराज रामचन्द्र के राज्यकाल में ही किया था। उनके द्वारा रचा गया यह ग्रन्थ युद्धकाण्ड (= लङ्काकाण्ड) तक पूर्ण हो जाता है। क्योंकि युद्धकाण्ड के अन्त में इस ग्रन्थ के गौरव एवं अध्ययन के फल का निर्देश उपलब्ध होता है। प्राचीन परम्परा के अनुसार ग्रन्थ का फल-कथन ग्रन्थ के अन्त में ही लिखा जाता है। युद्धकाण्ड के अन्त में फल-कथन निबद्ध होने से यहीं ग्रन्थ भी समाप्त हो जाता है। उत्तरकाण्ड पीछे से जोड़ा गया है। यह वाल्मीकि रचित भी नहीं है। इसमें अधिकतर कथाएं ऐसी हैं, जिन्हें कोई भी समझदार व्यक्ति स्वीकार नहीं कर सकता । यतः मूलवाल्मीकि रामायण युद्धकाण्ड पर ही समाप्त हो जाती है, अतः हमने भो इस ग्रन्थके अनुवाद-कार्य को यहीं समाप्त कर दिया है। अनुवाद का आरम्भ आरम्भ से सुन्दरकाण्ड तक का अनुवाद माननीय पंडित अखिलानन्द जी ने किया, परन्तु युद्धकाण्ड के अनुवाद का कार्य वे किन्हीं कारणों से शीघ्र आरम्भ न कर सके। पीछे उनकी मांखों में मोतियाबिन्द उतर आया। इस कारण चाहते हुए भी वे इस ग्रन्थ को पूर्ण न कर सके । युद्धकाण्ड के अनुवाद की मांग बराबर आ रही थी। सन् १६६६ में मैंने इसका अनुवाद करना आरम्भ किया, मुद्रण भी प्रारम्भ हुआ, परन्तु कार्याधिक्य के कारण कार्य रुक गया। लगभग १०-१२ सर्गों के पश्चात् इसका अनुवाद-कार्य अपने पाणिनि विद्यालय के आचार्य श्री पं० विजयपाल जी व्याकरणाचार्य के आधीन किया, उन्होंने इस कार्य को पूरा किया । मुद्रण-कार्य में भी मध्य-मध्य में ऐसी रुकावटें आती रहीं, जिनसे हम इसे शीघ्र छपवा न ‘के। इस प्रकार अपना प्रेस होते हुए भी इस काण्ड के मुद्रण में लगभग तीन वर्ष लग गये । अब बी कठिनाई से पूर्ण हुआ है। इस प्रकार इस महाकाव्य के प्रकाशन में लगभग १०-११ वर्ष लग गये । परन्तु अन्ततः यह कार्य पूर्ण हो गया, इसका हमें सन्तोष है। उत्तरकाण्ड के प्रकाशित करने की हमारी इच्छा नहीं है, क्योंकि यह पोछे की रचना है। इस प्रमाणयोग्य अंश अत्यन्त स्वल्प है, अधिकतर अप्रामाणिक अंश है। – युधिष्ठिर मीमांसक
Additional information
Weight | 3500 g |
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Dimensions | 25 × 19 × 7 cm |
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