Shrauta Yagya-Mimamsa (Sanskrit and Hindi)
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श्रोत बगों पर विचार करने से पूर्व ‘मन’ शब्द पर विचार करता माव-दयक है। इससे ‘यश’ के धौतकर्म से अतिरिक्त उस विस्तृत क्षेत्र का बोष होगा, जिसमें यज्ञ पाब्द प्रयुक्त होता है अथवा प्रयोग न होते हुये भी उसके क्षेत्र में झाता है। यज्ञ शब्द का अर्थ- ‘यज’ शब्द यज देवपूजासंगतिकरणदानेषु (घातुपाठ १।७२८) इस धातु से यजयाचयतविच्छप्रच्छरक्षो नङ् (अष्टा० ३।३।२०) इस पाणिनीय वचनानुसार भाव में नङ् (न) प्रत्यय होकर बनता है। ‘यज’ धातु के देवपूजा सङ्गतिकरण और दान ये तीन अयं हैं। देवपूजा में देव’ शब्द विवु क्रीडाविजिगीषाव्यवहारद्युतिस्तुतिमोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु (धातु ०४।१) इस पाणिनीय निर्देश के अनुसार बह्वयंक है। और पूजा का अर्थ है- सत्कार = यथायोग्य व्यवहार। इसनिये ‘देव’ चाहे जड़ प्राकृतिक तत्त्व वा शक्तियां हों चाहे चेतन, सभी के साथ यथायोग्य व्यवहार करना देवपूजा कहाती है, । प्राकृतिक पदार्थ अग्नि जल वायु आदि का प्राणिमात्र के कल्याण के लिऐ उचित उपयोग देवपूजा है, और उनके द्वारा किसी के घर को जलाना, किसी क्षेत्र के जलप्रवाह को रोककर अन्य क्षेत्र में सूखा डालना, वायु में प्रदूषण उत्पन्न करके प्राणियों के जीवन को संकट में डालना, आदि देव-अपूजा है। संगतिकरण का तात्पर्य है- किन्हीं पदार्थों का यथोचित मात्रा में संयोग करना, जिससे प्राणियों का कल्याण एवं उत्कर्ष हो, श्रेष्ठ धर्मात्मा विद्वानों का सत्संग करना आदि। इस संगतिकरण के द्वारा शिल्पविज्ञान भी ‘यज्ञ’ है। दान का तात्पर्य हैं- स्वयमुपार्जित धन-सम्पत्ति-विद्या आदि को प्राणिमात्र के कल्याण के लिऐ प्रयुक्त करना। इस प्रकार ‘यज्ञ’ शब्द का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है। इसी दृष्टि से स्वामी दयानन्द सरस्वती ने यजुर्वेद १।२ के भाष्य में लिखा है- बात्वर्थ के योग से यज्ञ का अर्थ तीन प्रकार का होता है। एक देव-पूजा – विद्या ज्ञान और धर्म के अनुष्ठान से वृद्ध देव – विद्वानों का ऐहिकफ धौर पारलौकिक सुख के सम्पादन के लिये सत्कार करना । दूसरा-अच्छे प्रकार पदार्थों के गुणों के मेल-विरोध-ज्ञान की संगति से शिल्पादि विद्या का
Additional information
Weight | 510 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 3 cm |
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