Importance of Vedanam Tatpracharopayascha [Sanskrit-Hindi] Historical analysis of various processes of Vedartha
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स्वाध्यायान्मा प्रमदः स्वाध्यायप्रवचनाम्यां न प्रमदितव्यम् वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है। भाचार्य समावर्तन के समय स्नातक को जो उपदेश या श्रादेश देता है, । उसमें एक वचन है- ‘स्वाव्यायान्मा प्रमदः’ अर्थात् स्वाध्याय से प्रमाद मत कर । स्वाध्याय शब्द ‘सु+म्रा अध्याय’ तथा ‘स्त्र (स्य) अध्यायः’ इस तरह दो प्रकार *से निष्पन्न होता है। इन दोनों का अर्थ निम्न प्रकार है- १- अच्छा अध्ययन अर्थात् वेदादि सच्छास्त्रों का अध्ययन । २- अपना अध्ययन, अर्थात् आत्मा तथा शरीर आदि के तत्त्वज्ञान के लिये प्रयत्न । ये स्वाध्याय शब्द के योगिक अर्थ हैं, किन्तु जहां-जहां स्वाध्याय के लिये शास्त्रकारों ने भादेश दिया है, वहां-वहां केवल यौगिक अर्थ अभिप्रेत नहीं है। ‘पहुज’ प्रादि शब्दों की तरह वह विशेषार्य में नियत है। शतपय के ‘अर्थात् स्वाध्यायप्रशंसा’ नामक ब्राह्मण, तथा मीमांसकों की मीमांसानुसार यह पद केवल वेदाध्ययन के लिये प्रयुक्त होता है। भतः ‘स्वाध्यायान्मा प्रमदः’ वाक्य का विशिष्ट अर्थ यह हुआ कि ‘वेदाध्ययन में प्रमाद मत कर’। इसी प्रकार ‘स्वाध्याय-प्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम्’ का अर्थ होगा- वेद के अध्ययन और अध्यापन में प्रमाद मत कर । यहां यह ध्यान में रखना चाहिये कि ये दोनों भादेश एक गृहस्य में प्रवेश करनेवाले स्नातक के लिए हैं। इसका तात्पर्य यह है कि प्रत्येक गृहस्थी को बेद के अध्ययन भौर अध्यापन करने का आदेश दिया जा रहा है। भगवान् मनु गृहस्थ घर्म प्रकरण में लिखते हैं-
Additional information
Weight | 250 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
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