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DHANVANTARI KRIT ANUBHUT AYURVEDA YOG SANGHRA Experienced Ayurveda Yoga Collection by Dhanvantari

Original price was: ₹750.00.Current price is: ₹550.00.

आयुर्वेद विश्व को भारतवर्ष की देन और संसार का सबसे पुराना चिकित्सा विज्ञान माना जाता है। हालाँकि संसार में आजकल चिकित्सा की लगभग नब्बे पैथियाँ कार्यरत है और प्रत्येक पैथी का एक निश्चित चिकित्सा सिद्धान्त होता है। जैसे आधुनिक विज्ञान (एलोपैथी) का चिकित्सा सिद्धान्त है-बैक्टीरिया (BACTERIA), वायरस (VIRUS) और पैरासाइट वर्म- (PARASITE WORM) इसी प्रकार होम्योपैथी का चिकित्सा सिद्धान्त सोरा (SORA), सिफलिस (SYPHILIS) और साइकोसिस (SYCO-SIS) है। इसी प्रकार आयुर्वेद का चिकित्सा सिद्धान्त वात, पित्त और कफ है। इन तीनों के प्राकृत/समान अवस्था में रहने से शरीर स्वस्थ और इनके असमान होने पर शरीर रोगी हो जाता है। स्वास्थ्य का कारण होने से इन्हें “धातु” कहा जाता है और रोगों को कारण होने से इन्हें “दोष” कहा जाता है। आयुर्वेद इन्हीं तीन (वायु, पित्त, कफ) को शरीर का मूल कारण मानता है। वायु रोग-यदि शरीर को पोषक आहार न मिले, किसी रोग के कारण शरीर निर्बल हो जाये, शरीर अथवा मन पर कोई भारी आघात आ पड़े या क्रोध, कलह, भय, शोक, चिन्ता आदि मानसिक भाों से ग्रस्त हो जाये या किसी विष द्रव्य (जैसे तम्बाकू, मद्य, कैफीन, भांग आदि) का चिरकाल तक सेवन किया जाये अथवा शरीर में मधुमेह, यूरिक एसिड, यूरिया आदि का या किसी रोग जीवाणु का विष चिरकाल तक बना रहे तो-शरीर का वायु तत्व निर्बल हो जाता है। शरीर व मन की क्षमता व सामर्थ्य कम हो जाते हैं। इस प्रकार शरीर की जीवनी शक्ति के निर्बल हो जाने से जो लक्षण हो जाते हैं उन्हें-“वायु रोग” या “वायु प्रकोप ” कहते हैं। इस अवस्था का प्रधान लक्षण शारीरिक अथवा मानसिक चलता अथवा विक्षोभशीलता है। यानि जब किसी अंग को रक्त, आक्सीजन अथवा आहार द्रव्य कम मिलते हैं तो उसमें चलता, वेदना, चमचमाहट, सुप्ति आदि लक्षण होने लगते हैं। इन्हीं लक्षणों से-वायु रोग का ज्ञान/अनुमान हो जाता है, क्योंकि से लक्षण वायु विकृति के सूचक होते हैं।

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Additional information

Weight 1100 g
Dimensions 22 × 14 × 5 cm

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