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Presentation of Vedic Literature Vedic-swara-mimansa

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यह “वैदिक-स्वर-मीमांसा” पं० युधिष्ठिर श्री मीमांसक ने ने बहुत वर्षों के निरन्तर शास्त्रानुशीलन के पश्चात् बहुत उपयोगी भौर स्वर-विषय का उत्कृष्ट पन्ष निला है। इससे वैदिक-स्वर-विषय की धनेक ग्रन्थियां गुलमेगी, इस विषय की गम्भीर जानकारी प्राप्त होगी । इस पुस्तक में वैदिक ग्रन्यों में प्रयुक्त उदात्त, मनुदात्त मौर स्वरित स्वरों की विशद व्याख्या की गई है। स्वरों का शब्दार्थ धौर वाक्यार्थ के साथ क्या सम्बन्ध है, इसकी सप्रमाण मीमांसा की है। वेदार्थ में शास्त्र का ज्ञान कितना मावश्यक है, उसकी उपेक्षा के क्या दुष्परिणाम होते हैं, इसकी सप्रमाण विस्तार से व्याख्या की है। अन्त में वैदिक ग्रत्यों में उदात्त मादि स्वरों के जितने प्रकार के चिह्न व्यवहुत होते हैं, उनकी व्याख्या भौर संहितापाठ से पदपाठ बनाने भौर उसमें होने वाले स्वर-विपयंय के नियम दिये गये हैं। यह सारा ग्रत्य ऋषि दयानन्द के “अथ वेदायों-अयोगितया संक्षेपतः स्वराणां व्यवस्था लिख्यते” (ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका) की व्याख्या में लिखा गया है। पाठक इस ग्रन्थ का गम्भीर अध्ययन कर बहुत लाभ उठावें, इसीलिए ट्रस्ट इस ग्रन्थ ‘को प्रकाशित कर रहा है। बहुत थोड़ी प्रतियां छपने के कारण इसका मूल्य ३) रखना पड़ा है। हमारी दृष्टि में विद्वान् लेखक ने अपने विचार बहुत योग्यता भौर स्पष्टता से लिखे हैं। सभी विद्वान इस विषय में उनके साथ पूरे सहमत हों, यह भावश्यक नहीं। “व्यत्यय” के सिद्धान्त पर जो लिखा गया है, उसमें हम तो महषि पाणिनि शेर पतञ्जलि के मत को प्रामाणिक समझते हैं। धर्वाचीन वैयाकरण व्यत्यय वाले प्रयोगों को अशुद्ध मानते हैं, तो यह उनकी भूल है। पतञ्जलि के “तिङां व्यत्ययः चषालं ये अश्वयूपाय तक्षति तक्षन्तोति प्राप्ते” वचन का भी इतना ही मनित्राव है कि वेद में विङन्त शब्दों में लौकिक नियमों का अतिक्रमण देखा जाता है” पृ० ६६। अर्वाचीन वैयाकरणों को यह बात माननी ही चाहिये।

Additional information

Weight 550 g
Dimensions 22 × 14 × 3 cm

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