Presentation of Vedic Literature Madhvacharya’s Sarvadarshan Sangrah
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सर्वदर्शनसंग्रह का प्रस्तुत हिन्दी-रूपान्तर मैंने ध्यानपूर्वक प्रायः आद्योपान्त देखा है। आज जब कि हिन्दी राष्ट्रभाषा के पद पर समासीन है, तब यह बात आवश्यक है और सामयिक है कि हिन्दी का साहित्य भी समृद्ध किया जाय । इसकी समृद्धि के लिए कतिपय विद्वान् मौलिक कृतियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं और कतिपय उच्चतर भाषाओं में वाग्बद्ध, परिष्कृत एवम् उच्च साहित्य का रूपान्तर प्रस्तुत कर रहे हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ दूसरे ढंग का सामयिक प्रयास है । मौलिक कृतियों में कृतिकार अपनी प्रतिभा और मेधा का मुक्त उल्लास प्रदर्शित करता है, पर रूपान्तरात्मक कृतियों में विद्वान् लेखक दूसरे की प्रतिभा और मेधा का साक्षात्कार करने की क्षमता रखकर ही अपना उत्तरदायित्व निभा सकता है। निष्कर्ष यह हुआ कि मौलिक कृतिकार की भाँति वह उतना मुक्त नहीं रहता । प्रस्तुत रूपान्तरण एक दार्शनिक कृति का रूपान्तरण है, जिसमें विद्वान् रूपान्तरकार ने यह शैली अपनायी है कि पहले मूल-पाठ का तटस्थ ढंग से रूपान्तर प्रस्तुत कर दिया जाय और उस संदर्भ में यदि कतिपय शब्द अतिरिक्त रखा जाना आवश्यक है, तो उसे कोष्ठकान्तर्गत रख दिया जाय । आज ही क्या, सदा से यह ढंग समुचित और सर्वोत्तम समझा जाता है। यही उचित है कि पहले मूल-पाठ का तटस्थ रूपान्तर रख दिया जाय जिससे हिन्दी के माध्यम से मूल को समझने वाला बुद्धिमान् पाठक सीधे मूल रूप को जान ले । इस स्तर पर पल्लव्न करने में यह भय रहता है कि कहीं रूपान्तरकार मूल का. अनुवाद अपनी दृष्टि से अन्यथा न प्रस्तुत कर दे-और यदि ऐसा हुआ तो वह लेखक और पाठक के बीच के माध्यस्थ्य का
Additional information
Weight | 1000 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 5 cm |
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