Presentation of Vedic Literature Shruti Saurabh
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महर्षि दयानन्द की निर्वाण-शताब्दी के समय स्वाभाविक था कि वेदों की याद आए। ऐसे समय दयानन्द के प्रति सबसे उत्तम श्रद्धाञ्जलि क्या हो सकती थी ? वही वेद, जो दयानन्द को अपने प्राणों से भी प्रिय थे; तो दयानन्द के प्रति वेद से उत्तम उपहार हो भी क्या सकता था ! अतः संस्थान ने वेदत्रयी की भाँति उपहारत्रयी अर्पित करने का निश्चय किया। इस उपहारत्रयी में तीन प्रकार के संग्रह प्रस्तुत किये जा रहे हैं, प्रथम – वैदिक उपदेशमाला जिसमें वर्ष के हर महीने आचरण में लाए जाने योग्य बारह उपदेशों का संग्रह है; दूसरा-वेदमञ्जरी, वर्ष के हर दिन स्वाध्याय के लिए उपयोग में आनेवाले ३६५ मन्त्रों का संग्रह है; तीसरा- श्रुति-सौरभ, वर्ष के प्रति सप्ताह काम में आनेवाले ५३ वैदिक प्रवचनों का संग्रह है जो आपके कर-कमलों की शोभा है। इसके लेखक आर्यसमाज के लब्धप्रतिष्ठित विद्वद्वर्य श्री पण्डित शिवकुमार जी शास्त्री हैं। कौन आर्यसमाजी है जो उनके नाम से परिचित नहीं! आर्यसमाज के मञ्च से उनके द्वारा की गई वेद-मन्त्रों की व्याख्याएँ जिसने भी सुनी हैं, वह मन्त्रमुग्ध हुए बिना नहीं रहा। वे व्याख्याएँ इतनी सरल, सरस और सुबोध होती हैं कि प्रत्येक श्रोता और पाठक श्रुति-सरस्वती में स्नान करने लगता है, जिससे व्यक्ति के समस्त कलुष धुलने लगते हैं। मुझे भी श्री शास्त्री जी द्वारा प्रवाहित इस वाक्सरिता में स्नान करने का सौभाग्य मिला है। मैंने जब-जब इस सरिता में डुबकी लगाई है, तब-तब आनन्द की अनुभूति की है। इन व्याख्याओं को सुनकर सदा यही इच्छा होती थी कि इनका प्रकाशन होना भी अत्यन्त आवश्यक है। मैं इस इच्छा को वर्षों अपने मन में सँजोए हुए अवसर की तलाश करता रहा कि कभी तो अवसर आएगा ही कि जब यह व्याख्या जनता-जनार्दन के हाथों में होगी। अन्ततः वह अवसर आ ही गया महर्षि दयानन्द-शताब्दी का। मैंने पूज्य पण्डित शिवकुमार जी से साग्रह निवेदन किया कि आप ५३ मन्त्रों की ऐसी व्याख्या तैयार कर दें कि जैसी आर्यसमाज के मञ्च से सुनाते हैं। मेरे स्नेहपूर्वक आग्रह को वे टाल न सके जिसका सुपरिणाम श्रुति-सौरभ नामक यह ग्रन्थ आपके सामने है। इससे एक बहुत बड़ी समस्या हल हो गई जो प्रायः उन आर्यसमाजों के सामने आती है, जहाँ कोई उपदेशक महानुभाव नहीं पहुँच पाता। वहाँ यह ग्रन्थरत्न वेद-व्याख्याता का काम करेगा, साथ ही सभी वेद-व्याख्याता व्यक्तियों के लिए भी अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा; उन्हें अनायास घर-बैठे वेद-व्याख्याएँ मिल गईं। इन्हें आत्मसात् करते ही हर आर्यसमाजी वेद-व्याख्याता की पीठ पर शोभायमान होगा। मैं आदरणीय श्री पण्डित शिवकुमार जी का अत्यन्त आभारी हूँ कि उन्होंने मेरे आग्रह को शिरोधार्य कर ऋषि-चरणों में अमूल्य उपहार अर्पित किया। संस्थान सदैव उनका आभारी रहेगा।
Additional information
Weight | 500 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 3 cm |
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