अग्नि सूक्त — ऋग्वेद के प्रथम सूक्त का वैदिक व्याख्यान Agni Sukta — A Vedic Discourse on the First Hymn of the Rigveda
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ऋग्वेद के प्रथम सूक्त “अग्नि सूक्त” का शुद्ध वैदिक, तार्किक और विचारपरक विवेचन।
Description
अग्नि सूक्त ग्रंथ ऋग्वेद के प्रथम सूक्त का गहन वैदिक विवेचन प्रस्तुत करता है। इस पुस्तक में आचार्य डॉ. धर्मवीर द्वारा अग्नि के वैदिक स्वरूप, उसके दार्शनिक अर्थ, यज्ञीय महत्व तथा जीवन में उसकी व्यावहारिक भूमिका को स्पष्ट किया गया है। ऋग्वेद का प्रथम मंत्र “अग्निमीळे पुरोहितं” केवल यज्ञाग्नि का स्तवन नहीं है, बल्कि वह वैदिक जीवन-दृष्टि, कर्म, ज्ञान और उपासना के समन्वय का उद्घोष है। इस ग्रंथ में अग्नि को देवता, प्रेरक शक्ति और दिव्य माध्यम के रूप में समझाया गया है। पुस्तक की विशेषता यह है कि इसमें प्रतीकात्मक या पौराणिक व्याख्याओं के स्थान पर शुद्ध वेदसम्मत, तार्किक और बौद्धिक विवेचन प्रस्तुत किया गया है, जो आर्य समाज और महर्षि दयानंद सरस्वती की वेद-व्याख्या परंपरा के अनुरूप है। मुख्य विषयवस्तु— ऋग्वेद के प्रथम सूक्त का शब्दार्थ और भावार्थ अग्नि का वैदिक एवं दार्शनिक स्वरूप यज्ञ, कर्म और जीवन का वैदिक संबंध वेद में ईश्वर-उपासना की वैज्ञानिक दृष्टि आधुनिक जीवन में अग्नि सूक्त की प्रासंगिकता यह ग्रंथ वेद-अध्ययन, यज्ञ-विज्ञान, वैदिक दर्शन तथा आर्य समाज के पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी और मार्गदर्शक है। 🇬🇧 English (Detailed Description) This book presents a Vedic exposition of the first hymn of the Rigveda, explaining the philosophical, ritualistic, and spiritual significance of Agni in a rational and Veda-based manner.
Additional information
| Weight | 282 g |
|---|---|
| Dimensions | 22 × 14 × 3 cm |
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