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Ayurved ke gyata maharshi Dayanand

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महर्षि दयानन्द मनुष्य को अणु से लेकर ब्रह्माण्ड तक के ज्ञान को प्राप्त करने का निरन्तर प्रयत्न करते रहने का उपदेश करते थे। उन्होंने स्वयं भी विविध विद्या विज्ञानों को सीखने और उन पर अधिकार प्राप्त करने का प्रयत्न किया था। उनके ग्रन्थों को देखने से प्रतीत होता है कि उन्होंने वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक आदि तथा शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, दर्शन, ज्योतिष आदि के उपलब्ध ग्रन्थों को पढ़कर अपने ज्ञान का विस्तार किया था। स्मृति-ग्रन्थ, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, धनुर्वेद तथा अन्य अनेक भौतिक विद्या विज्ञानों में भी उनकी तीव्र गति थी। आयुर्वेद का ज्ञान भी उनसे अछूता नहीं था। इसमें भी वे निष्णात थे।

महर्षि दयानन्द मानव के निर्माण का अर्थ उसके शारीरिक, बौद्धिक व आत्मिक विकास से लेते थे। उनका यह निश्चित मत था कि मनुष्य का शारीरिक व भौतिक विकास उसके बौद्धिक व आत्मिक विकास का आधार है। बिना स्वस्थ शरीर के व्यक्ति का जीवन व्यर्थ है। प्रस्तुत पुस्तक व्यक्ति को अपना शारीरिक विकास करने की प्रेरणा प्रदान करने के निमित लिखी गयी है।

Additional information

Weight 300 g
Dimensions 22 × 14 × 1 cm

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