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Prachin sankya sandrbh

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भारतीय जीवन में दर्शन की अतिशय उपयोगिता सदा से रही है। मनीषिप्रवर डॉ० वासुदेवशरण के शब्दों में “भारतीय संस्कृति का इतिहास वस्तुतः भारतीय दर्शन का ही विकसित रूप है।” सांख्यदर्शन के इतिहास का विवेचन एक प्रकार से प्राचीन भारतीय दार्शनिक विचारों के सांगोपांग इतिहास से सम्बन्धित है। कपिल के मूलग्रन्थ का नाम षष्टितन्त्र था। उसी का अपर नाम सांख्यदर्शन है। कपिल के मूल ग्रन्थ पर पञ्चशिख तथा वार्षगण्य इन दो प्रमुख आचार्यों ने व्याख्याएँ लिखीं।

आसुरि के शिष्य पञ्चशिख ने अपने दादागुरु कपिल के विषय में लिखा है-आदिविद्वान् निर्माणचित्तमधिष्ठाय परर्मापरासुरये जिज्ञासमानाय तन्त्रं प्रोवाच ।

अर्थात्-आदिविद्वान् परर्माष कपिल ने रचनानिमित्त चित्त को स्थिर कर जिज्ञासु आसुरि के लिए (पष्टि) तन्त्र का प्रवचन किया ।

Additional information

Weight 410 g
Dimensions 22 × 14 × 2 cm

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