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Brahmasutra (Vedantadarshanam)

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उपनिषदों में प्रतिपादित अध्यात्म को लक्ष्य कर वेदव्यास बातरायण ने एकमात्र अखण्ड ब्रह्म निर्दोष-निष्कलंक स्वरूप को प्रमाणित सिद्ध करने के लिए ब्रह्मसूत्र ग्रन्थ का निर्माण किया। वहीं ग्रन्थ आजकल ‘वेदान्त दर्शन’ के नाम से जाना जाता है। इसमें प्रत्येक पहलू से ब्रह्म के अस्तित्व को सिद्ध करके उसके वास्तविक स्वरूप का निरूपण किया गया है।

कौन नहीं जानता कि एक ही ब्रह्मसूत्र की आचार्य शंकर, रामानुज मध्व और वल्लभाचार्य आदि के द्वारा जो परस्पर भिन्न-भिन्न व्याख्यायें की गईं वे सब ब्रह्मसूत्र के ही मन्तव्यों का निरूपण नहीं करती हैं, अपितु व्याख्याकारों के अपने-अपने दृष्टिकोण को प्रकट करती हैं। इन भिन्न-भिन्न व्याख्याओं के कारण अद्वैत, शुद्धाद्वैत, द्वैताद्वैत, द्वैत आदि अनेक सम्प्रदायों की स्थापना हुई।

इस ग्रन्थ में इसी मत का उपादान किया है। किन्तु मध्यकालीन आचार्यों की भाँति व्याख्याकार ने अपना मत सूत्रों पर बलात् आरोपित नहीं किया है,

उन्होंने उसे तत्तत् सूत्र से स्वभावतः निःसत् दिखाने का प्रयास किया है। इस भाष्य के अध्ययन से वेदान्तदर्शन ही नहीं, प्रसंगोपात्त सभी दर्शनों, उपनिषदों और गीता आदि आर्ष ग्रन्थों में परस्पर आनुकूल्य स्थापित हो जाता है और वेदान्तदर्शन स्पष्टतः द्वैतवादी दर्शन सिद्ध होता है।

Additional information

Weight 1060 g
Dimensions 22 × 14 × 5 cm

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