Braham vigyan
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संसार की वस्तुओं के साथ हमारा सम्बन्ध सदा रहने वाला नहीं है तथा विषय भोगों को अधिकाधिक भोगकर कोई व्यक्ति पूर्ण व स्थायी सुख प्राप्त नहीं कर सकता। इसके विपरीत ईश्वर के साथ हमारा सम्बन्ध सदा रहने वाला है और उसी को प्राप्त करके मनुष्य पूर्ण सुखी हो सकता है। यह सत्य शाश्वत सिद्धान्त मनुष्य को प्रायः सुनने को मिलता है परन्तु यौवन काल में यह बात समझ में नहीं आती है। यह सत्य बात तब समझ में आती है जब मनुष्य का जीवन ही समाप्त होने को होता है तथा पढ़ी-सुनी-समझी बातों को क्रियान्वित करने के लिये शक्ति, साधन व अवसर समाप्त हो चुके होते हैं।
यौवन काल में यह बात समझ में क्यों नही आती है इसका उत्तर उपनिषत्कार ऋषि ने निम्न प्रकार से दिया है –
न साम्परायः प्रतिभाति बालं प्रमाद्यन्तं वित्तमोहेन मूढम् । अयं लोको नास्ति पर इति मानी पुनः पुनर्वशमापद्यते मे ॥
(कठ.. २-६)
भाव यह है कि जो मनुष्य भौतिकवाद के दलदल में फँसा हुआ-विषय
भोगों में आसक्त है तथा धन की प्राप्ति में मूढ़ बन गया है, ऐसे अज्ञानी व्यक्ति को आत्मा-परमात्मा, यम-नियम, ध्यान, समाधि आदि विषय अच्छे नहीं लगते, उन पर विश्वास नहीं होता, वह तो मानता है कि बस यही प्रथम व अन्तिम जन्म है इससे पूर्व न जीवन था न भविष्य में मरने के बाद होगा। ऐसे व्यक्ति बार-बार जन्म मृत्यु के चक्र में फँस कर अनेक प्रकार के दुःखों को भोगते हैं।
Additional information
Weight | 295 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
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