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Mundka Mandukya ke upnishad

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शाश्वत का अर्थ है सदा रहने वाला, नित्य। जो नित्य है वह सबके लिए है।

ज्ञान का मूल स्रोत परमात्मा है और परमात्मा का ज्ञान वेद ज्ञान है। यह ज्ञान प्राणीमात्र के लिये है।

जैसे एक वृक्ष, जिसका सम्बन्ध मूल से कट गया हो, शीघ्र ही सूखने तथा सड़ने लगता है, इसी प्रकार मानव समाज भी, मूल ज्ञान से विच्छिन्न हो सूख तथा सड़ रहा है। मानव-समाज मानवता-विहीन हो रहा है।

इस मानव समाज को पुनः ज्ञान के उस मूल स्रोत-वेद से जोड़ने का एक प्रयास ही यह शाश्वत संस्कृति परिषद् है।

वेद ज्ञान को प्राप्त करने तथा सब जनों को कराने का यह एक प्रयास विज्ञ लेखक ने किया है। इस रचना के प्रकाशना-धिकार परिषद् को सौंपने के लिए हम श्री गुरुदत्त जी के अत्यन्त आभारी हैं।

Additional information

Weight 235 g
Dimensions 22 × 14 × 1 cm

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