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Yog marg

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Description

भूमिका
बहुत समय से योग में मेरी रुचि थी, इसके लिए योग-सम्बन्धी पुस्तकों का स्वाध्याय करता रहा। आबू-जैसे पर्वतों में भी एतदर्थ घूमता रहा। अनेक संन्यासी-महात्माओं से योग-विषयक वार्त्तालाप किया। कुछ एक राजयोगी, वेदान्तयोगी और हठयोगी साधुओं से थोड़ा बहुत लाभ भी प्राप्त किया। प्रत्युत मेरी रुचि विशेषरूप से पातञ्जलयोग की पद्धति में थी। उसके सन्दिग्ध वादों और मार्गों के सम्बन्ध में अनेक योगी महानुभावों से पूछा, परन्तु इस विषय में पूरी सहायता न मिल सकी। हाँ, उनकी निजी पद्धतियों का श्रवण अवश्य किया। नाम
आसन, प्राणायाम आदि की कई-एक क्रियाएँ हठयोगी साधुओं
से सीखीं, किन्तु, हठयोग में रुचि न होने से, धोती और मुद्रा आदि
क्रियाएँ मैंने जानबूझकर नहीं कीं। प्रत्युत अच्छे-अच्छे हठयोगियों के
मुख से भी यही सुना कि योग के विषय में पातञ्जल योग से अधिक
उत्तम मार्ग अन्य कोई नहीं है, अतएव मैंने पातञ्जल योगपद्धति का
क्रियात्मक अनुसन्धान करने का निश्चय किया, एवं दृष्टिबन्ध
(Sightism), अन्तरावेश (Spiritualism), सम्मोहन (Mesmer-
ism), संवशीकरण (Hypnotism) को भी योग की शाखा समझकर
क्रियात्मकरूप में सीखा, परन्तु पता लगा कि उक्त चारों बातें भी पातञ्जल
योग के साथ सम्बन्ध नहीं रखतीं और न ही योग की क्रियाएँ कही जा
सकती हैं, प्रत्युत मन की भ्रान्तभूमि में इनके प्रयोग किये जाते हैं,
किन्तु योग शान्तभूमि में होता है, अतएव योग के अभ्यास में उक्त
बातें त्याज्य ही हैं। किसी अन्य प्रकार से भी मानसिक शक्ति का ह्रास
करके शून्यता का अवलम्बन कर मनोमूढ़ बनना उचित नहीं है। योग
के सिद्धान्त में क्षिप्त, मूढ, विक्षिप्त इन तीन अवस्थाओं में योग नहीं
माना जाता है, परन्तु एकाग्रता और निरोध (सर्वनिरोध) ये दो अवस्थाएँ
ही योग की भूमियाँ कही हैं, जो’ श्रद्धावीर्यस्मृति-समाधिप्रज्ञापूर्वक
इतरेषाम्।’ (योगदर्शन १.२०) श्रद्धा, वीर्य (उत्साह), स्मृति, समाधि

Additional information

Weight 133 g
Dimensions 22 × 14 × 1 cm

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