Arthavigyan Aur Vyakaranadarshan
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Description
डॉ. कपिल देव द्विवेदी का परिचय
डॉ. कपिल देव द्विवेदी, एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री और व्याकरणज्ञ, भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में हुआ, जहाँ से उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत की। बचपन से ही, उन्हें अध्ययन का गहरा शौक था, जो उनके आगे की सफलता की नींव बना। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालयों से प्राप्त की, जहाँ उनकी बुद्धिमत्ता और अध्ययन की लगन ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई।
अपनी उच्च शिक्षा के लिए, डॉ. द्विवेदी ने प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में दाखिला लिया और अर्थशास्त्र तथा व्याकरणदर्शन के विषयों में गहराई से अध्ययन किया। उनकी औपचारिक शिक्षा के दौरान, उन्होंने कई प्रमुख व्यक्तियों से प्रेरणा ली। उनकी शोध यात्रा ने उन्हें न केवल शैक्षणिक ज्ञान प्रदान किया, बल्कि व्यावहारिक दृष्टिकोण भी विकसित किया, जिससे वे व्यवहार में अर्थशास्त्र और व्याकरण का अनुप्रयोग समझ सके।
डॉ. द्विवेदी की रुचि विशेष रूप से अर्थविज्ञान और व्याकरणदर्शन के संगम में रही है। उन्होंने इन दोनों क्षेत्रों में अध्ययन करते हुए महत्वपूर्ण शोध पत्र और पुस्तकें लिखी हैं, जिनका भारतीय अकादमिक समुदाय में व्यापक स्वागत किया गया है। उनके कार्यों ने इन विषयों को समृद्ध किया है और वर्तमान में कई छात्र उनकी उपलब्धियों से प्रेरित हो रहे हैं। उनके योगदान भारतीय शोध की बुनियाद को मजबूत करने में सहायक रहे हैं। डॉ. कपिल देव द्विवेदी का व्यक्तित्व शिक्षा के प्रति उनकी दीवानी सोच का प्रतीक है, जिसने उन्हें मौलिक विचारों और दृष्टिकोणों का निरंतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया।
अर्थविज्ञान और व्याकरणदर्शन में डॉ. द्विवेदी का योगदान
डॉ. कपिल देव द्विवेदी ने अर्थविज्ञान और व्याकरणदर्शन के क्षेत्र में अद्वितीय कार्य किए हैं, जो उनके योगदान को महत्वपूर्ण बनाते हैं। उनकी रचनाएँ न केवल रचनात्मकता को प्रकट करती हैं, बल्कि वे विचारों की गहराई भी दर्शाती हैं। डॉ. द्विवेदी के लेखन में उनके द्वारा प्रस्तुत विभिन्न सिद्धांतों का विवेचन देखने को मिलता है। उनके प्रमुख ग्रंथों में ‘अर्थविज्ञान की आधारभूत संरचना’ और ‘व्याकरणदर्शन की आधुनिकता’ शामिल हैं, जो भारतीय भाषा विज्ञान को नई दिशा देते हैं।
उनका पहला ग्रंथ, ‘अर्थविज्ञान की आधारभूत संरचना’, अर्थविज्ञान के मूलभूत तत्वों और उनके पारस्परिक संबंधों पर चर्चा करता है। इस ग्रंथ में व्याकरण और अर्थविज्ञान के बीच के जटिल संबंधों को सुस्पष्ट किया गया है, जिससे पाठकों को इस बात की गहरी समझ मिलती है कि कैसे शब्द अर्थ उत्पन्न करने में सहायक होते हैं। दूसरी ओर, ‘व्याकरणदर्शन की आधुनिकता’ अपने समय की चुनौतियों का सामना करते हुए व्याकरण में नवीनतम दृष्टिकोणों को उजागर करता है।
डॉ. द्विवेदी के शोध पत्र भी अत्यंत प्रासंगिक हैं, जिसमें उन्होंने भाषा और अर्थविज्ञान के उन्नयन पर गहन विचार-विमर्श किया है। उनके विचारों ने न केवल शैक्षणिक वाद-विवाद को प्रेरित किया है, बल्कि समाज और संस्कृति पर भी उनके विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा है। डॉ. द्विवेदी का कार्य न केवल विद्यार्थियों के लिए प्रेरणादायक है, बल्कि यह विद्वानों के लिए भी एक संदर्भ के रूप में कार्य करता है। उनकी दृष्टि ने भारतीय भाषाई परंपरा को सम्मानित किया है और आधुनिक भाषा विज्ञान में एक नया अध्याय जोड़ा है।
Additional information
Weight | 500 g |
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Dimensions | 22 × 18 × 2 cm |
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