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Ashtadhyayi Bhashyam in Set of 3 Volumes

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महर्षि के प्रायः सब ग्रन्थ उन के जीवनकाल में प्रकाशित हुए । केवल ऋग्वेद और यजुर्वेद भाष्य, जो मषि के स्वर्गवास समय तक मुंशी बख्तावरसिंह आदि यन्त्रालय के अध्यक्षों के कुप्रबन्ध और शिथिलता के कारण सम्पूर्ण न छप चुके थे, वे उन के स्वर्गवास के पश्चात् वर्षों तक छपते रहे। तथा सत्यार्थप्रकाश का परिमार्जित संशुद्ध और परिवद्धित (सोत्तरार्द्ध) द्वितीय संस्करण भी उन के स्वर्गवास के अनन्तर ही प्रकाशित हुआ । किन्तु अष्टाध्यायीभाष्य न ही मषि के जीवनकाल में और न ही उन के स्वर्गारोहण के बहुत वर्षों बाद तक प्रकाशित हो सका। फलतः साधारण आर्य जनता अष्टाध्यायीभाष्य को सत्ता से नितान्त अपरिचित रही। अब ४९ वर्षों के महान् विलम्ब के पश्चात् जनता के सम्मुख यह पुस्तक प्रस्तुत होती है, सो कोई सज्जन पुस्तक के महर्षिकृत होने में जयशंका न करें, इसलिये हम प्रामाणिक बाह्य तथा आन्तरिक साक्षी के कतिपय उद्धरण देते हैं। बाहय साक्षी में महर्षि के विज्ञापन और पत्र ही सर्वमान्य होने से प्रथम व्दवृत किये जाते हैं ।।
विक्रमीय संवत्सर १९३५ के वैशाख मास में प्रकाशित ऋग्वेद। दिभाष्यभूमिका के अन्तिम अर्थात् १५, १६ वें अङ्क के अन्त में निम्नलिखित विज्ञापनपत्र छपा –
“आगे यह विचार किया जाता है कि संस्कृत विद्या की उन्नति करनी चाहिए। सो विना व्याकरण के नहीं हो सकती । जो आजकल कौमुदी, चन्द्रिका, सारस्वत,
१. समस्त ग्रन्थ संस्कृत तथा आर्यभाषा में है, इसलिये हमारा विचार था कि भूमिका भी इन दोनों भाषाओं में लिखते, किन्तु अधिक व्यय तथा विस्तारभय से भूमिका केवल आर्यभाषा में लिखी है।
२. ऋग्०भूमिका के १५, १६ वें अङ्क के अग्रिम पृष्ठ के नीचे के प्रान्त पर यह विज्ञप्ति – “विदित हो कि सं० १६३५ ज्येष्ठ मास अन्त पर्यन्त पञ्जाब देश के अमृतसर नगर में ** स्वामी दयानन्द सरस्वतीजी निवास करेंगे ।।” इस विज्ञापन से विदित होता है कि वैशाख नन के अन्त अथवा ज्येष्ठ मास के आरम्भ में यह अङ्क प्रकाशित हो कर ग्राहकों के पास हुँच चुका था ।।
३. कौमुदियों में से रामचन्द्र की प्रक्रियाकौमुदी, मेघविजयसूरि (संवत् १७२५) की हैमकौमुदी त्या भट्टोजिदीक्षित की सिद्धान्तकौमुदी, ये तीन ग्रन्थ अधिक प्रसिद्ध रहे हैं। इन में भी सिद्धान्तकौमुदी ही समस्त उत्तरीय भारत में प्रचलित है। दक्षिण में कहीं कहीं जैन मठों में हैमकौमुदी का पठन पाठन होता है। तथा जब से सिद्धान्तकौमुदी बनी, तब से प्रक्रियाकौमुदी का प्रप्चार बिल्कुल बन्द हो गया ।।
४. प्वन्द्रिका से सम्भवतः रामप्चन्द्राश्रमकृत सिद्धान्तप्चन्द्रिका अभिप्रेत है ।।

Additional information

Weight 2150 g
Dimensions 26 × 17 × 7 cm

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