Ashtadhyayi Prathama vritti Vol-1,2,3
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अष्टाध्यायी का परिचय अष्टाध्यायी, पाणिनि द्वारा रचित संस्कृत व्याकरण का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ, व्याकरण शास्त्र का मूल आधार है। यह ग्रंथ संस्कृत भाषा के अध्ययन और समझ के लिए एक दृढ़ आधार प्रदान करता है। इसका नाम “अष्टाध्यायी” इस तथ्य से आया है कि इसमें कुल आठ अध्याय हैं, जिनमें प्रत्येक अध्याय में अनेक सूत्र मौजूद हैं। ये सूत्र संस्कृत भाषा के विभिन्न व्याकरणिक पहलुओं को स्पष्ट करते हैं, जिससे अध्येताओं को इसके नियमों को समझने और प्रायोगिक रूप से लागू करने में मदद मिलती है। अष्टाध्यायी का निर्माण भाषा के विकास और शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण आवश्यकता के उत्तर में किया गया था। पाणिनि ने व्याकरणीय नियमों का संकलन करते हुए, संस्कृत भाषा को एक व्यवस्थित और सारगर्भित रूप में प्रस्तुत किया। इससे पहले व्याकरण के सिद्धांत एकत्रित नहीं थे, और पाणिनि ने इसे संगठित करके इसे अध्ययन के लिए उपयुक्त बनाया। अष्टाध्यायी के अध्ययन से विस्तार से समझ में आता है कि कैसे भाषा का व्याकरण एवं संरचना कार्य करता है, और इसने अन्य भाषाओं के व्याकरणिक अध्ययन पर भी प्रभाव डाला है। इस ग्रंथ का महत्व केवल संस्कृत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सभी भाषा-शास्त्रियों और शोधकर्ताओं के लिए एक संदर्भ ग्रंथ के रूप में कार्य करता है। पाणिनि की विद्वत्ता और उनकी दृष्टि ने भाषाई सिद्धांतों को स्थापित किया और उनके द्वारा विकसित नियमों का उपयोग आज भी व्याकरणिक अनुसंधान में किया जाता है। अष्टाध्यायी का अध्ययन न केवल इसके ऐतिहासिक योगदान के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आधुनिक भाषा-विज्ञान के विकास में भी मौलिक भूमिका निभाता है। प्रथम वृत्ति का विश्लेषण प्रथम वृत्ति, अष्टाध्यायी का आरंभिक अध्याय, भारतीय व्याकरण के मूलभूत सिद्धांत को स्पष्ट करता है। यह अणु, स्वर, और व्यंजन के महत्व और प्रयोग को समझने के लिए एक आधार प्रदान करता है। अणु शब्द के संदर्भ में, यह सरल ध्वनियों का संगठित रूप है, जो भाषा के मूलभूत तत्व बनाते हैं। व्याकरण की दृष्टि से, अणु एक प्रकार का संक्षिप्त शब्द है, जिसका उपयोग वाक्य में अर्थ स्पष्ट करने के लिए किया जाता है। स्वर और व्यंजन, भाषा के दो प्रमुख भाग होते हैं। स्वर ध्वनियाँ शब्दों के निर्माण में सहायक होती हैं, जबकि व्यंजन इकाइयाँ इन स्वरों के साथ मिलकर अर्थ पूर्ण ध्वनियाँ बनाती हैं। पहले अध्याय में यह समझाया गया है कि कैसे ये तत्व एक साथ मिलकर वाक्यों का निर्माण करते हैं। विशेष रूप से, यह व्याख्या की गई है कि शब्दों की संरचना में स्वर और व्यंजन को समर्पित स्थान कैसे दिया जाता है और उनके उचित उपयोग के लिए व्याकरणिक नियमों का पालन कैसे किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, हम पहले अध्याय में उल्लेखित सूत्रों का विशुद्ध अध्ययन करते हैं। प्रत्येक सूत्र का महत्वपूर्ण अर्थ होता है, जिसे समझना, भाषा में गहराई से ज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। उदाहरण के लिए, किसी व्याकरणिक नियम का उल्लेख करते समय, उस सूत्र को कैसे समझा जाए और वाक्य निर्माण के दौरान उसका उपयोग कैसे किया जाए, यह महत्वपूर्ण रहता है। इस प्रकार, प्रथम वृत्ति केवल शब्दों के ज्ञान का ही नहीं, बल्कि व्याकरण की नियमबद्धता का भी संकेत देती है। यह व्याकरणिक नियमों के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और इसकी समझ भाषा के अध्ययन में सहायक सिद्ध होती है।
Additional information
Weight | 2500 g |
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Dimensions | 25 × 15 × 10 cm |
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