Atharvaveda Subhasitavali
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Description
अथर्ववेद का महत्व और योगदान
अथर्ववेद, वेदों में से एक प्रमुख ग्रंथ, भारतीय धार्मिक और दार्शनिक परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि प्राचीन भारत में उसके अस्तित्व के समय की सांस्कृतिक जड़ों को दर्शाती है। यह वेद धार्मिक अनुष्ठानों से अधिक, दैनिक जीवन में नीति, स्वास्थ्य, और समाज व्यवस्था संबंधी ज्ञान का संग्रह है। अथर्ववेद में जीवन के विभिन्न पहलुओं को समाहित किया गया है, जैसे कि चिकित्सा, तंत्र-मंत्र, औषधियों का उपयोग और भूत-प्रेत, जिससे यह भारतीय संस्कृति की विभिन्न धाराओं का प्रतिनिधित्व करता है।
धार्मिक दृष्टिकोण से, अथर्ववेद महत्वपूर्ण मंत्र और अनुष्ठान प्रदान करता है, जो साधारण जीवन के साथ-साथ आध्यात्मिकता को भी समाहित करता है। यह वेद प्राचीन भारतीय समाज में भगवान तथा प्रकृति की शक्तियों के प्रति सम्मान और श्रद्धा की भावना को प्रदर्शित करता है। अनेक उपासना विधियों के माध्यम से, यह अद्वितीय सिद्धांतों को प्रस्तुत करता है, जिनसे मनुष्य की आध्यात्मिक यात्रा में मार्गदर्शन मिलता है।
दार्शनिक दृष्टिकोण से भी अथर्ववेद की गहराई महत्वपूर्ण है। इसमें जीवन के उद्देश्य, सुख और दुख के कारण, और मानव चेतना की गहराई के प्रति विचार विमर्श किया गया है। आज के समाज में, अथर्ववेद के उपदेश और शिक्षाएँ अत्यंत प्रासंगिक हैं, क्योंकि वे आज की चुनौतियों में मनुष्य को सामना करने की प्रेरणा देते हैं। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य और समर्पण का महत्व, व्यावसायिक नैतिकता, और सामाजिक संबंधों को सशक्त करने वाले विचार सभी इस ग्रंथ में निहित हैं।
इस प्रकार, अथर्ववेद का अध्ययन न केवल प्राचीन भारतीय संस्कृति की झलक पेश करता है, बल्कि वर्तमान में भी हमारे सामाजिक, धार्मिक और दार्शनिक जीवन में योगदान दे सकता है।
डॉ. कपील देव द्विवेदी की दृष्टि और शुभासीतावली
डॉ. कपील देव द्विवेदी ने शुभासीतावली के माध्यम से वेदों के गहन स्वरूप को समझाने का प्रयास किया है। उनकी दृष्टि में, यह महत्वपूर्ण है कि पारंपरिक ग्रंथों का विश्लेषण समकालीन संदर्भ में किया जाए। शुभासीतावली में उन्होंने न केवल आध्यात्मिक विचारों को प्रस्तुत किया, बल्कि समाज के विभिन्न पहलुओं को भी एकीकृत किया है। उनका यह दृष्टिकोण भारतीय वेदांत के मूल तत्वों को स्पष्ट करने में सहायक सिद्ध होता है।
डॉ. द्विवेदी ने शुभासीतावली में दर्शाए गए विचारों के जरिए हमें यह संदेश दिया है कि प्राचीन ज्ञान का विश्लेषण आज की समस्याओं का समाधान ढूंढने में सक्षम हो सकता है। उनके अध्ययन का उद्देश्य यह रहा है कि वेदों में निहित ज्ञान को आधुनिक संदर्भ में उपयोगी बनाना। उन्होंने स्पष्ट रूप से दर्शाया है कि कैसे अथर्ववेद की वृहत दृष्टि आज के समाज के लिए महत्वपूर्ण है।
अर्थात, उनकी पहचान और दृष्टि ऐसे पहलुओं पर केंद्रित है जो न केवल धार्मिक या आध्यात्मिक हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में भी उनका महत्त्व है। उनके कार्यों का भारतीय समाज पर जो प्रभाव पड़ा है, वह विशेष रूप से युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। डॉ. कपील देव द्विवेदी ने ऐसे विचारों को प्रस्तुत किया जो हमें अपने सांस्कृतिक विरासत के प्रति जागरूक करते हैं। यह उनके अद्वितीय योगदान का परिणाम है कि अब लोग शुभासीतावली को एक महत्वपूर्ण अध्ययन के रूप में देख रहे हैं, जो न केवल प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिक तत्वों को जोड़ता है, बल्कि समाज के समग्र विकास में भी सहायक है।
Additional information
Weight | 300 g |
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Dimensions | 18 × 12 × 3 cm |
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