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Sampurn Atharvved Bhasha Bhashya Vol 1-2

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Description

आचार्य क्षेमकर्णदास त्रिवेदी का परिचय

आचार्य क्षेमकर्णदास त्रिवेदी भारतीय संस्कृत के एक प्रमुख विद्वान तथा अद्वितीय आचार्य थे। उनका जन्म 1871 में हुआ था, और वे एक गहन चिंतक, शिक्षक एवं लेखन के प्रति समर्पित व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य वेदों के ज्ञान का प्रचार-प्रसार करना और भारतीय संस्कृति को समझना था। उन्होंने अपनी शिक्षा की शुरुआत तात्कालिक संस्कृत विद्यालयों से की, जहाँ उनके विद्या के प्रति उत्कट प्रेम ने उन्हें औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया।

आचार्य त्रिवेदी ने अपने जीवनभर वेदों की गहन अध्ययन और अनुसंधान में समय बिताया। उन्होंने “अथर्ववेद भाषा भाष्य” नामक ग्रंथ की रचना की, जो वेदों के भाषाई और सांस्कृतिक संदर्भ में महत्वपूर्ण योगदान देती है। इस ग्रंथ के माध्यम से उन्होंने वेदों को सरल और सुसंगत रूप में प्रस्तुत किया, जिससे आम जनमानस में वेदों के प्रति जागरूकता बढ़ी। वेदों का यह अनुवाद और व्याख्या आज भी विद्वानों और छात्रों के बीच महत्वपूर्ण मानी जाती है।

इसके अतिरिक्त, आचार्य क्षेमकर्णदास त्रिवेदी ने संस्कृत साहित्य और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर लेखन किया और उन्हें दूसरों के साथ साझा किया। उनके समर्पण ने न केवल भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया बल्कि उन्होंने विभिन्न विद्या प्रचार के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके विचार और कार्य आज भी सराहे जाते हैं और उनके अद्वितीय दृष्टिकोण से भारतीय वेदों के प्रति नए दृष्टिकोण का विकास हुआ है।

अथर्ववेद का महत्व

अथर्ववेद, जिसे हिंदू वेदों में चौथा वेद माना जाता है, भारतीय संस्कृति, धर्म और समाज का अभिन्न हिस्सा है। यह वेद मुख्य रूप से अनुष्ठान, जादू, तंत्र और औषधि के साथ-साथ दैनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है। इसके धार्मिक पहलुओं में मंत्रों और तंत्रों की सहायता से अनुष्ठानिक क्रियाएँ शामिल हैं, जो शांति, समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए किए जाते हैं। यह वेद न केवल धार्मिक क्रियाकलापों में, बल्कि सामाजिक रूप से भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, कई सामाजिक समारोहों में अथर्ववेद के मंत्रों का उपयोग किया जाता है, जैसे विवाह, जन्म, और श्राद्ध संस्कार।

सांस्कृतिक स्तर पर, अथर्ववेद की कविताएँ और मंत्र भारतीय जनजीवन में गहराई से रच बस गई हैं। वे जनसंख्या के साक्षर वर्ग के बीच ज्ञान और शिक्षा का स्रोत भी रही हैं। इसके विभिन्न श्लोकों का उपयोग न केवल धार्मिक आयोजनों में किया जाता है, बल्कि ये समाज में नैतिकता, धर्म और सही आचरण का प्रचार भी करते हैं। अनेक अवसरों पर उपासना के लिए अथर्ववेद के मंत्रों का जाप किया जाता है, जिससे स्थानीय परंपराओं और सांस्कृतिक अमीरता को बढ़ावा मिलता है।

इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि अथर्ववेद का महत्व भारतीय समाज में अनन्य है। इसका धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं के माध्यम से प्रभाव केवल प्राचीन काल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आज भी भारतीय जीवन शैली और परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस वेद के श्लोक और सिद्धांत भारतीय मानसिकता और व्यवहार को आकार देने में निरंतर सहायक साबित हो रहे हैं।

अथर्ववेद भाषा भाष्य का सारांश

आचार्य क्षेमकर्णदास त्रिवेदी ने ‘अथर्ववेद भाषा भाष्य’ के माध्यम से अथर्ववेद के ग्रंथों को एक नई दृष्टि प्रदान की है। यह ग्रंथ न केवल संस्कृत की व्याकरणिक संरचना को स्पष्ट करता है, बल्कि वेदों के गूढ़ अर्थों को भी सरल भाषा में प्रस्तुत करता है। त्रिवेदी जी की यह कृति विभिन्न मेधा और अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण आधार बनाती है।

‘अथर्ववेद भाषा भाष्य’ का मुख्य उद्देश्य वेदों के पाठों की व्याख्या करना और उन्हें सामाजिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक संदर्भ में समझाना है। ग्रंथ में दी गई शिक्षाएँ और विश्लेषण, मूल पाठों के साथ-साथ उन संदर्भों का अवलोकन करते हैं, जिनका संबंध उन्हें छात्रवृत्ति और साधना में है। त्रिवेदी जी ने वर्णित सिद्धांतों के माध्यम से यह दर्शाने का प्रयास किया है कि अथर्ववेद केवल मंत्रों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन के भौतिक और आध्यात्मिक पहलुओं से भी संबंधित है।

इस ग्रंथ में प्रमुख पाठों के साथ-साथ उनके विभिन्न व्याख्याएँ भी शामिल हैं, जो परमपिता की उपासना, तंत्र, और अनुष्ठान संबंधी ज्ञान को उजागर करते हैं। इसके अतिरिक्त, त्रिवेदी जी ने वेदों के पाठों की प्रासंगिकता पर जोर देते हुए यह सिद्ध किया है कि यह ग्रंथ न केवल विद्या के अध्ययन में सहायक है, बल्कि दैनिक जीवन में भी उपयोगी है।

अर्थात, ‘अथर्ववेद भाषा भाष्य’ एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो न केवल वेदों की गहराई को समझने में मदद करता है, बल्कि इसका अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों के लिए भी मार्गदर्शक है। इसके सिद्धांत और व्याख्याएँ वर्तमान समय में भी काफी प्रासंगिक हैं।

त्रिवेदी जी का दृष्टिकोण और शैली

आचार्य क्षेमकर्णदास त्रिवेदी का दृष्टिकोण हिंदू धर्म और संस्कृत साहित्य का गहन अध्ययन करने के बाद विकसित हुआ। उनका ‘अथर्ववेद भाषा भाष्य’ भारतीय ज्ञान परंपरा की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। त्रिवेदी जी की व्याख्या शैली विशिष्ट और विश्लेषणात्मक है, जो पाठकों को जटिल विषयों को सुगमता से समझने में मदद करती है। उन्होंने भाषा और शैली की संरचना में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जिसमें वेदों की गहराई को उजागर करने का प्रयास किया गया।

उनकी साहित्यिक शैली सरल, स्पष्ट और बोधगम्य है, जिससे विभिन्न स्तरों के पाठक आसानी से लाभ उठा सकते हैं। त्रिवेदी जी ने सांस्कृतिक संदर्भों को ध्यान में रखते हुए अपने भाष्य में भाषा का प्रयोग किया है, जो पाठकों के लिए एक ज्ञानवर्धक अनुभव को सुनिश्चित करता है। उनके कार्य का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि उन्होंने प्राचीन भारतीय ग्रंथों की आलोचनात्मक समीक्षा की, जो भारतीय अध्ययन में न्यायिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है।

त्रिवेदी जी का विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण न केवल पाठकों के लिए बल्कि विद्या के छात्रों के लिए भी आवश्यक है। वे पाठ के विभिन्न आयामों की खोज करते हैं, जिससे पाठक एक गहरी और समग्र समझ विकसित कर सकें। उनकी आलोचनात्मक दृष्टि ने विभिन्न विमर्शों को प्रोत्साहित किया है, जिसके माध्यम से पाठक न केवल विषय का अध्ययन करते हैं, बल्कि उस पर विचारशीलता भी विकसित कर पाते हैं। यह उनके कार्य की विशेषता है जो उनकी लेखनी को अद्वितीय बनाती है।

आज का संदर्भ और निष्कर्ष

आचार्य क्षेमकर्णदास त्रिवेदी का कार्य और उनके ‘अथर्ववेद भाषा भाष्य’ आज के संदर्भ में अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। उनकी शिक्षा न केवल प्राचीन भारतीय ज्ञान का एक अभिन्न हिस्सा है, बल्कि यह वर्तमान में भी सामयिक समस्याओं के समाधान में सहायक सिद्ध हो सकती है। त्रिवेदी ने जो दृष्टिकोण अपनाया, वह न केवल वैचारिक गहराई को प्रकट करता है, बल्कि आज के समाज में भी उनकी शिक्षाएँ प्रासंगिक बनी हुई हैं।

आज के युग में जब धर्म, संस्कृति और विज्ञान के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है, त्रिवेदी की कार्यशैली और शिक्षाएँ इस दिशा में ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करती हैं। उनके विचारों में जो गहनता और विचारशीलता है, वह आधुनिक विचारकों को भी प्रेरित करती है। विशेष रूप से, उनकी दृष्टि समाज के विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन करती है, जिससे कि लोगों को एक समग्र दृष्टिकोण प्राप्त हो सके।

जब हम समकालीन समाज में उनकी विरासत का मूल्यांकन करते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि आचार्य त्रिवेदी की शिक्षाएँ केवल प्राचीन ग्रंथों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे आज भी समाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विमर्श में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनकी विधियाँ और विचारधारा हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि कैसे हमें अपने अतीत को समझते हुए भविष्य की ओर अग्रसर होना है।

संक्षेप में, आचार्य क्षेमकर्णदास त्रिवेदी का योगदान न केवल ज्ञान की दुनिया में महत्वपूर्ण है, बल्कि वे आज के संदर्भ में एक मील के पत्थर की तरह हैं, जो हमें प्राचीन से आधुनिक विचारों के संगम की दिशा में ले जाते हैं। उनके सिद्धांत और कार्य आज की चुनौतियों का सामना करने के लिए एक मजबूती का माध्यम हैं, जिन्हें हम सभी को समझना और अपनाना चाहिए।

Additional information

Weight 3000 g
Dimensions 25 × 15 × 8 cm

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