Autobiography of Pandit Ramprasad Bismil
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आज दिनांक 16 दिसम्बर, 1927 ई० को निम्नलिखित पंक्तियों का उल्लेख कर रहा हूँ, जबकि 19 दिसम्बर, 1927 ई० सोमवार (पौष कृष्ण 11 सम्वत् 1984 वि०) को साढ़े छः बजे प्रातः काल इस शरीर को फाँसी पर लटका देने की तिथि निश्चित हो चुकी है। अतएव नियत समय पर इहलीला संवरण करनी होगी हो।” और 19 दिसम्बर को वन्देमातरम् और भारत माता की जय कहते हुए वे फाँसी के तख्ते के निकट गए। चलते समय वह कह रहे थे- “मालिक तेरी रज़ा रहे और तू ही तू रहे, बाकी न मैं रहूँ, न मेरी आरजू रहे। जब तक कि तन में जान, रगों में लहू रहे, तेरा ही जिक्र या तेरी ही जुस्तजू रहे।” तत्पश्चात् उन्होंने कहा- “I wish the downfall of the British Empire” (मैं ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूँ) फिर वह तख्ते पर चढ़े और ‘विश्वानि देव सवितर्दुरितानि’ मन्त्र का जप करते हुए फन्दे से झूल गए। वह शानदार मौत जो ‘बिस्मिल’ को प्राप्त हुई, शायद लाखों में दो-चार को ही मिल सकती है। बिस्मिल का जन्म सन् 1897 में हुआ था और सन् 1927 में वह शहीद हुए, यानी कुल जमा उन्होंने तीस वर्ष की उम्र पाई, जिनमें 11 वर्ष क्रांतिकारी जीवन में व्यतीत हुए। क्या भाषा और क्या भाव, दोनों की दृष्टियों से बिस्मिल का आत्मचरित एक अद्भुत ग्रन्थ है। जब हमने पहले-पहल पुस्तक को समाप्त किया, तो हम स्तब्ध रह गए। सोचने लगे कि इतना महत्वपूर्ण ग्रन्थ इतने वर्षों तक उपेक्षित क्यों पड़ा रह गया ? निस्सन्देह’ काकोरी के शहीद’ नामक पुस्तक को ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर लिया था, फिर भी स्वाधीनता प्राप्ति के बाद तो वह छप हो सकती थी। शायद उससे पहले भी छप जाती। बहुत कुछ सोचने के बाद हम इस परिणाम पर पहुंचे कि सारा दोष उस कृत्नतापूर्ण वातावरण का है, जो इस देश में वर्षों से व्याप्त है। क्या राजनीतिक और क्या साहित्यिक दोनों ही क्षेत्रों में कृतज्ञता नामक गुण का लोप हो रहा है और उसकी जिम्मेदारी मुख्यतः लेखकों तथा समालोचकों पर है। पिछले दिनों में सैंकड़ों – सहस्रों ही वृथापुष्ट पोथे हिन्दी प्रकाशकों ने छापे होंगे।
Additional information
| Weight | 350 g |
|---|---|
| Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
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