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Bal Shiksha
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Categories: विजयकुमार गोविंदराम हासानंद, स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती
Description
बच्चे देश की निधि और राष्ट्र की मुस्कराहट हैं। बच्चे राष्ट्र की वे कलियाँ हैं जो विकसित होकर फूल बनते हैं और अपने सौरभ से, पराग से, दिव्यगुणों से, अपने उज्वल चरित्र से, अपने त्याग, तप, सेवा और पुरुषार्थ से सारे राष्ट्र को महकाते हैं। बालक राष्ट्र की आधारशिला हैं। वे राष्ट्र की रीढ़ की हड्डी हैं। आज के बालक ही कल के नागरिक हैं। बालकों में से ही लेखक, कवि, वक्ता, धर्मोपदेशक, साहित्यकार, वेद-व्याख्याता और नेता बनते हैं । बालकों के इस महत्त्व को समझते हुए उनकी शिक्षा और दीक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए, परन्तु खेद का विषय है कि भारत के स्वतन्त्र हो जाने पर भी हमारी शिक्षा की रीति-नीति में कोई अन्तर नहीं आया। यहाँ अब भी मैकाले की पद्धति कार्य कर रही है। आज जो शिक्षा दी जा रही है उसमें न चरित्र का कोई महत्त्व है, न सदाचार का गौरव है, उसमें न नैतिकता है और न धार्मिकता । आज की शिक्षा-प्रणाली में शिक्षित और दीक्षित बालकों में न देश के प्रति प्रेम है, न परमात्मा के प्रति भक्ति है, न माता-पिता के प्रति श्रद्धा है, न गुरुजनों के प्रति आदर है। आज की शिक्षा केवल परीक्षा पास करने का यन्त्र है और वह भी चाकू और छुरे के ज़ोर पर नकल करके । यदि बालकों की शिक्षा में धार्मिकता और नैतिकता का पुट होता तो ये बालक आये दिन अपने गुरुओं के समक्ष हड़ताल की ताल न ठोकते, मार्ग में चलते हुए लड़कियों पर आवाजें न कसते, अपने अध्यापकों और प्रिंसिपलों को मौत के घाट न उतारते । आज आवश्यकता है शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन करने की । भारतीय परम्परा के अनुसार बालक की शिक्षा गर्भ में आने से पूर्व ही आरम्भ हो जाती है। माता-पिता जैसी सन्तान चाहते हैं, अपने-आपको वे उसी साँचे में ढालते हैं। गर्भ में भी माता उसी प्रकार का आहार और विहार करती है। गर्भ से बाहर आने पर माता-पिता बालक को उत्तम शिक्षा करते हैं। बालक की शिक्षा कैसी होनी चाहिए, इस विषय में महर्षि दयानन्द सरस्वती लिखते हैं- ‘जब वह कुछ-कुछ बोलने और समझने लगे तब सुन्दर वाणी और बड़े-छोटे, मान्य, माता, राजा, विद्वान् आदि से भाषण, उनसे वर्त्तमान और उनके पास बैठने आदि की भी शिक्षा करें, जिससे कहीं उनका अयोग्य व्यवहार न होके सर्वत्र प्रतिष्ठा हुआ करे ।’ आगे वे फिर लिखते हैं- ‘जिनसे अच्छी शिक्षा, विद्या, धर्म, परमेश्वर, माता-पिता, आचार्य, विद्वान्, अतिथि, राजा, प्रजा, कुटुम्ब, बन्धु, भगिनी, भृत्य आदि से कैसे-कैसे वर्त्तना-इन बातों के मन्त्र, श्लोक, सूत्र, गद्य-पद्य भी अर्थसहित कण्ठस्थ करावें ।’ – सत्यार्थप्रकाश, द्वितीय समुल्लास हमने महर्षि दयानन्द सरस्वती के कथनानुसार बालकों के लिए उपर्युक्त सभी विषयों पर और इनके अतिरिक्त अन्य विषयों पर भी मन्त्र, सूत्र, श्लोक आदि संग्रहीत किये हैं। माता-पिता उन्हें स्वयं पढ़ें, कण्ठस्थ करें और बच्चों को भी पढ़ाएँ और कण्ठस्थ कराएँ । विद्यालयों में ऐसी पाठ्य-पुस्तकें लगें जिनमें इस प्रकार की शिक्षा हो । इस शिक्षा से बालक निश्चितरूप से उत्तम नागरिक बनेंगे । उनमें देश-प्रेम की भावनाएँ जाग्रत् होंगी; नैतिकता की भावनाएँ पनपेंगी; माता, पिता, आचार्यों के लिए श्रद्धा-भक्ति और आदर की भावनाएँ उभरेंगी, इस आशा के साथ सत्यार्थप्रकाश शताब्दी और बालवर्ष १६७६ के अवसर पर यह कृति बालकों के लिए भेंट है ।
Additional information
| Weight | 121 g |
|---|---|
| Dimensions | 18 × 12 × 1 cm |
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