Bharat Gandhi Nehru ki Chhaya mein
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मैंने एक पुस्तक ‘जवाहरलाल नेहरू एक विवेचनात्मक वृत्त’ लिखी थी। यह पुस्तक सन् 1966 में छपी थी। 1967 में कुछेक समाचार-पत्रों में यह समाचार छपा था कि उक्त पुस्तक के लेखक पर भारत सरकार, भारत में विभिन्न समुदायों में वैमनस्य फैलाने के आरोप में, मुकदमा करने वाली है। इसके कुछ दिन उपरान्त एक पुलिस अधिकारी लेखक और प्रकाशक से पूछताछ करने भी आया था। उससे पता चला था कि सरकार कदाचित् भारत दण्ड विधान की धारा 153-ए के अधीन मुकदमा करेगी।
यह धारा इस प्रकार है-हमने ऐसा कोई अपराध नहीं किया था। किन्हीं भी समुदायों में वैमनस्य फैलाने का हमारा आशय नहीं था। उस पुस्तक से कुछ वैसा हुआ भी नहीं था।
साथ ही उस पुस्तक के
लिखने का उद्देश्य श्री जवाहरलाल नेहरू के विचारों और कार्यों की विवेचना करना था। यदि किसी समुदाय का उल्लेख उस पुस्तक में हुआ था तो केवल इस विचार से कि जवाहरलाल नेहरू के कार्यों और कथन से, उस समुदाय के प्रति इतना प्रेम प्रकट होता था कि वे दूसरे समुदायों से अन्याय करते दिखाई दिए थे। विवेचना जवाहरलाल नेहरू की थी, किसी समुदाय की नहीं।
अब हमारा यह निश्चय है कि वर्तमान पुस्तक श्री जवाहरलाल नेहरू तथा महात्मा गांधी के जीवन कार्यों और उनके विचारों पर ही लिखी जाए। हम यह देख रहे हैं कि अभी तक कांग्रेस और भारत सरकार, श्री नेहरू और गांधी जी के नामों की माला जपते हुए भारत की नौका को डुबोने का प्रयास कर रही है। आज भी देश की राष्ट्रभाषा के विषय में नेहरू जी के नाम की दुहाई देकर राष्ट्रभाषा और राष्ट्र की शिक्षा का सत्यनाश किया जा रहा है। अभी तक देश में ऐसे लोग हैं, जो यह समझ रहे हैं कि यदि जवाहरलाल जी न होते तो भारत को, प्रथम स्वराज्य ही न मिलता और यदि मिलता तो देश तुरन्त रसातल को पहुँच जाता।
ऐसे भोले-भाले देशवासियों की ज्ञानवृद्धि के लिए और धूर्त एवं स्वार्थियों को नेहरू जी की आड़ लेकर अपना उल्लू सीधा करने से रोकने के लिए वर्तमान पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में स्वराज्य काल में नेहरू जी की पड़ रही परछाईं के घातक परिणामों पर भी प्रकाश डालने का यत्न किया है।
Additional information
Weight | 441 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
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