Bharatiy Chikitsa Visheshank
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भारतीय चिकित्सा का मूलाधार वेद
Description
भारतीय चिकित्सा को जिस सुप्रसिद्ध नाम से जाना जाता है, वह नाम है आयुर्वेद। आयुर्वेद को ही हम भारतीय चिकित्सा शास्त्र कह सकते हैं। अन्य शास्त्रों की ही भाँति आयुर्वेद नामक शास्त्र का मूल वेद ही है। यद्यपि ऋग्वेदादि चारों वेदों में आयुर्वेद के तत्त्व यत्र क्वचन विद्यमान हैं, तथापि विशेषरूप से अथवा कहना चाहिए कुछ विस्तार से उनका वर्णन हमें अथर्ववेद में मिलता है। यही कारण है कि आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद माना जाता है, जैसा कि सुश्रुत संहिता के आरम्भ में कहा गया है-
इह खलु आयुर्वेदं नामोपाङ्गमथर्ववेदस्या- नुत्पाद्यैव प्रजाः श्लोकशतसहस्रमध्यायसहस्रं च कृतवान् स्वयम्भूः ततोऽल्पायुष्ट्वमल्पमेधस्त्वं चालोक्यं नराणां भूयोऽष्टधाप्रणीतवान् ।
(सुश्रुतसंहिता सूत्रस्थान अ.१ सूत्र ६)
पं. जयदेव शर्मा, मीमांसातीर्थ ने ऋग्वेदादि चारों वेदों का चौदह भागों में हिन्दी में भाष्य लिखा है, जो आर्यभाषाभाष्य नाम से प्रसिद्ध है। उनके अनुसार अथर्ववेद के २० काण्डों में कुल मिलाकर ५५ ऐसे सूक्त हैं, जिनका सम्बन्ध विविध रोगों और उनकी चिकित्सा से है। अनेक प्रकार की ओषधियाँ और जड़ी-बूटियाँ किस प्रकार उन-उन रोगों के उपशमन के लिए उपयोगी हैं, यह सम्बद्ध मन्त्र-सूक्तों में बतलाया गया है। मुख्यतः प्रथम काण्ड से लेकर अष्टम काण्ड तक ही विविध रोगों और भेषजों का वर्णन वहाँ है।
उनमें भी सर्वाधिक सोलह सूक्त छठे काण्ड में और केवल एक सूक्त दशवें काण्ड में उस विषय से सम्बन्धित हैं। अथर्ववेद के इन सूक्तों और मन्त्रों में जिन रोगों और उनकी चिकित्सा का वर्णन किया गया है, उनका विवरण इस प्रकार है-
हृद्रोग और कामला, कुष्ठ और पलित रोग, त्वचा दोष, ज्वर, आस्राव, यक्ष्मादि रोग, पृश्निपर्णी ओषधि, रोगकृमियों का नाश, क्षेत्रीय व्याधियाँ, नपुंसकता, विष-चिकित्सा, कटे-फटे अंगों का रोपण, अपामार्ग ओषधि, अजश्रृंगी, गुग्गलु ओषधि, सिलाची (लाक्षा), ज्वर निदान एवं चिकित्सा, सर्पविष-चिकित्सा, कफरोग निदान एवं चिकित्सा, कण्ठमाला रोग का निदान एवं चिकित्सा, विषाणका ओषधि, व्रण-चिकित्सा, अपची या गण्डमाला रोग, पिप्पली ओषधि, उन्माद, दुःस्वप्न-नाश, कुष्ठ नामक ओषधि, दीर्घजीवन की विद्या, ब्रह्मचर्य का महत्त्व, सुखपूर्व प्रसव की विद्या, हिरा (शिरा) और धमनियों का वर्णन इत्यादि। यह संक्षिप्त विवरण इस बात का निदर्शन एवं प्रमाण है कि आयुर्वेद शास्त्र का मूल अथर्ववेद है।
वस्तुतः आयुर्वेद या भारतीय चिकित्सा के सम्बन्ध में लेख लिखने के योग्य और सक्षम अधिकारी तो वे ही कुशल वैद्य और चिकित्सक ही हैं, जिन्होंने विधिवत् आयुर्वेद या चिकित्साशास्त्र का अध्ययन किया हो और उसकी व्यावहारिकता
Additional information
Weight | 221 g |
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Dimensions | 22 × 17 × 1 cm |
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