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Brahmacharya Sandesh

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ब्रह्मचर्य के सन्देश को सुनने और सुनाने के लिए दैवीय प्रेम तथा पवित्रता का वातावरण होना चाहिए।

Description

प्रारम्भिक शब्द
(स्वामी श्रद्धानन्द जी द्वारा लिखित)
आजकल की सभ्य कहानेवाली पाश्चात्य जातियों के पूर्वज जिस समय अन्धकार में हाथ से रास्ता टटोल रहे थे और अपने अंग को वस्त्र से ढाँपना तक न जानते थे, उस समय आर्यावर्त में ‘ब्रह्मचर्य’ विषयक ज्ञान अपनी चरम सीमा तक पहुँच चुका था । मानवीय विकास के लिए ब्रह्मचर्य अत्यावश्यक समझा जाता था, विचार तथा क्रिया में विवाह को एक धार्मिक संस्कार समझा जाता था, और सन्तानोत्पत्ति गृहस्थ के तीन ऋणों में से एक ऋण समझा गया था। बृहदारण्यकोपनिषद् में गर्भाधान- विधि को अत्यन्त पवित्र यज्ञ कहा गया है। इसके अनुष्ठान के लिए अनेक नियमों की श्रृङ्खला बाँध दी गई है। मैक्समूलर जैसे उच्चकोटि के विद्वान् ने उक्त स्थल का आंग्लभाषा में अनुवाद नहीं किया, क्योंकि उसका विचार था कि वर्तमान सभ्य कहाने- वाले गन्दे संसार के लिए वे विचार इतने उच्च हैं कि उनका महत्त्व समझ में नहीं आ सकता ।
ब्रह्मचर्य के महत्त्व को समझने के लिए यूरोप तथा अमेरिका को पर्याप्त समय लगा है। थोड़े समय से वहाँ के विज्ञान तथा चिकित्सा से परिचय रखनेवाले विद्वानों ने अनुभव करना प्रारम्भ किया है कि ब्रह्मचर्य की नींव पर ही व्यक्ति तथा जाति के जीवन की भित्ति का निर्माण किया जा सकता है। पश्चिम में हर-एक को विचारों की आज़ादी है। उसीका परिणाम है कि इस थोड़े-से अरसे में इस विषय में उन्होंने अपने वैज्ञानिक अनुभवों तथा अन्वेषणों के आधार पर एक नवीन विद्या की भी (८ )
आधार-शिला रख दी है, जिसका नाम ‘युजेनिक्स’ (सन्तति- शास्त्र) है। ‘ब्रह्मचर्य’ एक व्यापक शब्द है, जिसमें ‘युजेनिक्स’ भी शामिल है। वेदों के आदेश के अनुसार यह मानवीय जीवन का प्रथम सोपान है, और यही उन्नति के मार्ग पर मनुष्य-समाज का पथ-प्रदर्शक है। इस युग में सबसे प्रथम ऋषि दयानन्द ने उँगली उठाकर वर्तमान सभ्यता की जड़ में लगे हुए घुन की तरफ़ निर्देश करते हुए वाणी तथा आचरण द्वारा बतलाया था कि शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक ब्रह्मचर्य द्वारा ही मनुष्य- समाज की रक्षा हो सकती है। आज पाश्चात्य विद्वान् ऋषि दयानन्द के ब्रह्मचर्य-विषयक एक-एक शब्द की दाद दे रहे हैं।
मेरे शिष्य प्रो० सत्यव्रत सिद्धान्तालंकार ने विद्यार्थी-समाज के लिए ‘ब्रह्मचर्य-सन्देश’ को लिखकर मातृभूमि की महान् सेवा की है। गुरुकुल-विश्वविद्यालय, काँगड़ी के आचार्य की हैसियत से मुझे पूरे १४ वर्ष तक सैकड़ों बालकों के जीवन के निरीक्षण तथा संचालन का उत्तरदायित्वपूर्ण अधिकार प्राप्त रहा है। मेरा अनुभव है कि प्रत्येक युवक की १३ से १८ वर्ष तक की अवस्था अत्यन्त नाजुक होती है, परन्तु यदि आचार्य कुशलता- पूर्वक इस समय के खतरों में से उसे निकाल ले जाय, तो बालक का जीवन बिगड़ने के स्थान पर शारीरिक तथा मानसिक शक्ति का ख़ज़ाना बन सकता है। ‘ब्रह्मचर्य-सन्देश’ जैसी पुस्तकों के प्रचार से बालकों का अत्यन्त उपकार हो सकता है, परन्तु वास्तविक कार्य तभी होगा, जब आचार्य की देख-रेख में रहते हुए ब्रह्मचारियों के जीवन का निर्माण किया जायगा ।
ब्रह्मचर्य के सन्देश को सुनने और सुनाने के लिए दैवीय प्रेम तथा पवित्रता का वातावरण होना चाहिए। मैंने स्वयं इस विषय में विद्यार्थियों को अनेक उपदेश दिये हैं। जबतक मन को शुद्ध कर इन उपदेशों को न सुना जाय, तबतक इनसे लाभ के स्थान पर हानि होने की भी सम्भावना रहती है। इसलिए इस पुस्तक के पढ़नेवालों के प्रति मेरी सलाह है कि इसके पन्नों को (ε)
पवित्रता तथा नम्रता के भाव से पलटें । विश्व-विधायक देव- माता को अपने हृदय में प्रतिष्ठित करके, और यदि सम्भव न हो, तो अपनी प्रेममयी जननी जिसकी गोद में खेलते-खेलते कई वर्ष बिता दिये, उसका ध्यान करके, पवित्र तथा दैवीय वाता- वरण में इस पुस्तक को हाथ लगाएँ ।
गुरुकुल छोड़ने के बाद, संन्यास में प्रविष्ट होते समय, मेरा विचार था कि ब्रह्मचर्य-विषयक अपने अनुभवों को देश के विद्यार्थी-समाज तक पहुँचाऊँ। परन्तु ‘मेरे मन कछु और है, विधना के मन और’- मैं अपने वास्तविक मार्ग से हटकर सामयिक घटनाओं की उलझन में पड़ गया। इस समय भारत के विद्यार्थी-समाज की सबसे बड़ी ज़रूरत यही है कि रहनुमा बनकर उसके वैयक्तिक जीवन को ठीक मार्ग पर चलाया जाय । मैं भारत के स्कूलों तथा कॉलेजों के अध्यापकों एवं आचार्यों से कहना चाहता हूँ कि वे अपने धर्म को पहचानें; स्वयं ब्रह्मचारी बनें, ताकि अपने छात्रों को ब्रह्मचारी बना सकें। वेद भगवान् का कथन है- ‘आचार्यो ब्रह्मचर्येण ब्रह्मचारिणमिच्छते’ – ब्रह्म- चर्य धारण करके ही आचार्य छात्र को ब्रह्मचारी बना सकता है। मेरी यही हार्दिक प्रार्थना है कि ‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव’ स्वरूपवाले भगवान् मातृ-भूमि के आचार्यों तथा शिष्यों को ज्योति-स्तम्भ होकर कर्तव्य-मार्ग प्रदर्शित करें ।

Additional information

Weight 219 g
Dimensions 14 × 12 × 1 cm

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