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Brahmana Mimansa

Original price was: ₹600.00.Current price is: ₹478.00.

पाठक वृन्द ! आप जानते हैं कि आजकल प्रत्येक नीच से नीच व उच्च से उच्च हिन्दू जातियें अपनी अपनी जाति की कान्फ्रेंस व महासभायें बनाकर शर्मा, वर्मा और गुप्त बनने के क्षेत्र में विद्यमान हैं परन्तु वाम्तव में उन की आदि स्थिति क्या है ? ये आदि से अपने किन पूर्वजों की सन्तान हैं ? शास्त्रधारानुसार उन्हें क्या २ करने का अधिकार है तथा किन २ कर्मों के करने के ये अनधिकारी हैं? जिस पथ को उन्होंने ग्रहण किया है वह पथ उन्हें उन्नति क्षेत्र के उच्च शिखर पर पहुंचाने को शक्त है या नहीं? उन के पुरु‌षावों की कार्यावलियें क्या २ हैं? उन के गोत्र, प्रवर, शाखा शिखा व सूत्रादि का पता कहीं पर है या नहीं ? आदि आदि स्थितियों को जानना व तद्विषयक विवरण का पाठ करना एक मात्र हिन्दू जाति के लिये एक महान कठिन दृश्य था क्योंकि जिस जाति को अपने भूत का सम्यंक ज्ञान नहीं है उस जाति के लिये आने वाले काल में उन्नति का पथ बड़ा ही संकटाकीर्ण होगा ऐमी दशा में प्रत्येक जाति के लिये उस का श्रृंखलाबद्ध इतिहास होने की आवश्यक्ता थी ।

वर्तमान काल में प्रायः लोगों के विचार हैं कि सब से पूर्व एक ही ब्राह्मण जाति थी, किन्हीं २ का कहना है कि भारतवर्ष में सब दस ही प्रकार के ब्राह्मण हैं, किन्हीं २ का कहना है कि सब ८४ के ब्राह्मण हैं, किन्हीं २ ऐतिहासिक विद्वानों ने सब ६१ प्रकार के ब्राह्मण लिखे हैं, बड़े २ सिविलियन महाशक्ति शाली अंग्रेज अफसरों ने भी अपने ग्रन्थों में ७० प्रकार के ही ब्राह्मणों से अधिक नीं लिखे हैं पर हमने इसे ब्राह्मण निर्णय निर्णय ग्रन्थ में ३२४ प्रकार के ब्राह्मणों का वर्णन किया है और यथाशक्ति उन का विवरण सूक्ष्म क्रम से विस्तृत रूप में दिया है जिस में सम्पूर्ण भारतवर्ष के बाह्मण आ गये हैं यदि हमारा इतना महान उद्योग करने पर भी कोई ब्राह्मण जाति इस ग्रंथ में छुट गयी हो अथवा अब्राह्मण जाति लिखी गयी जान पड़े तो उस की सूचना आने पर पुनरावृत्ति में हम उचित संशोधन कर देंगे ।

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Description

जो ब्राह्मण परोपकारादि गुणों के कारण से देवता के समान पूजे जाते थे और जिन्हें भूदेव अर्थात् इस वसुन्धरा का देवता कहा जाता था, जो संसार के शिक्षादाता गुरू थे, जीव मात्र की उन्नति के पथ प्रदर्शक थे, वह अब काल के कराल आ-क्रमण से, कर्त्तव्य विमुख होने के कारण उन्नति के उच्चतम शिखिर से स्खलित हो कर अवनति के गहरे गर्त्त में पतित हो रहे हैं। परम दुःख की बात है कि जिन्हें समयोचित (बृटिश राज्य की कृपा से) स्वोन्नति के साधनों को सब से पहिले प्राप्त कर उन्नति के मार्ग का अग्रगन्ता बनना चाहिये था, अधिकांश अद्यावधि अपने आश्रित अथवा शिष्यों के डंके की चोट समयोचित उन्नति की ओर जाने के शब्द सुनकर भी प्रगाढ़ निद्राभिभूत ही हो रहे हैं।  यद्यपि कहीं २ (पंजाब, बंगाल) के ब्राह्मणों ने अब कुछ चेतनता लाभकर अपनी जागृति के लक्षण दिखाये हैं सही, पर अब भी सर्वत्र बहुत कुछ सुधार की आवश्यकता है। समय बता रहा है कि अन्यान्य जातियों की भांति जब तक ब्राह्मण पात्र अपने अवान्तर भेद त्याग एक संघशक्ति का पुनः संग-ठन् न करेंगे तब तक इन की यथोचित उन्नति असम्भव ही है। आप यह तो भली भांति जान चुके हैं कि आरम्भ में ब्राह्मण मात्र एक ही थे। पीछे से देश भेदादि कारणों से दशत्रिधि विख्यात हुये । अनन्तर इस ही प्रकार मुख्य देशों की अनेक आवान्तर जातिय हो गई । हा खेद ! ऐसी अवस्था जानकर भी अजान वनकर अपनी बहुसंख्यक समूह शक्ति की एकता के समयोचित प्रयत्नों से पश्चात्पद हो रहे हैं! कभी यह गति आपकी प्रशंसनीय नहीं कही जा सकती । भला अभी सर्वदेशीय, कालान्तर से देश आचारादि विभेद प्राप्त, ब्राह्मण बन्धुओं से सम्मिलन की आशा कहां?

Additional information

Weight 758 g
Dimensions 22 × 15 × 4 cm

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