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brahmcharya Sadhna

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Description

काम-ऊर्जा का सदुपयोग ब्रह्मचर्य-साधना ‘ब्रह्मचर्य’ का शाब्दिक अर्थ है- ब्रह्म को आचरण में उतारना। ब्रह्म शब्द के तीन अर्थ हैं- वेद, तत्त्व, तप। इस प्रकार ब्रह्मचर्य का अर्थ हुआ-वेदचर्या अर्थात् वेद-मन्त्रों का श्रवण करना, उन्हें याद करना, उनके अर्थ का अनुसन्धान करना, उनका प्रतिदिन सस्वर उच्चारण करना। तत्त्व-चर्या का अर्थ है-वेद में प्रतिपादित परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त करना और इस ज्ञान को धारण करने की पात्रता प्राप्त करने के लिये वेद-शास्त्र के अनुसार कर्म और उपासना करना। तपश्चर्या का अर्थ है तप करना अर्थात् शरीर, इन्द्रियों और मन को तपाना। जैसे सोने को तपाने से उसका मल निकल जाता है और उसकी दीप्ति प्रकट होती है जैसे ही शरीर-इन्द्रिय अन्तःकरण संघात को तपाने से इसके दोष हरते हैं व इसमें तेजस्विता व शक्ति प्रकट होती है। गीता में तीन प्रकार के तपों का उल्लेख है- सात्त्विक तप- श्रद्धाया परया तप्तं, तपस्-तत्-त्रिविधं नरैः । अफला-का‌ङ्क्षिभिर्-युक्तैः, सात्त्विकं परिचक्षते ।। – (गीता 14.17)1 फल को न चाहने वाले, युक्त (समाहित चित्त वाले) पुरुषों द्वारा परम श्रद्धा से किये हुए उस (पूर्वोक्त) तीन प्रकार के

Additional information

Weight 110 g
Dimensions 22 × 14 × 2 cm

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