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Complete Vyakaran Mahabhashyam Patanjalimuni-Virachitam hindi Bhasya sahit Vol 1-10

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प्रकाशकीय
महाभाष्य पाणिनीय अष्टाध्यायी का सर्वश्रेष्ठ व्याख्या-ग्रन्थ है, परन्तु पौराणिक जगत् ने इसके सम्बन्ध में एक विचित्र कथा घढ़ रखी है। महाभाष्यकार पतञ्जलि को हमारे पौराणिक भाई शेषनाग का अवतार मानते हैं और कहते हैं कि एक बार महर्षि पाणिनि कुएं पर स्नान कर रहे थे कि भगवान् पतञ्जलि वहाँ जा पहुंचे। उनको देखकर महर्षि पाणिनि घबरा गए और उनके मुख से ‘को भवान्’ के बदले ‘कोर् भवान्’ निकल गया। पतञ्जलि ने झट से ‘सर्पोऽहम्’ के बदले कहा ‘सप्पोऽहम्’। पाणिनि जी ने आक्षेप किया ‘रेफः कुत्र गतः’ तो पतञ्जलि जी ने उत्तर दिया ‘तव मुखे’। कथा यहां समाप्त नहीं होती। कहते हैं कुछ पण्डितों ने भगवान् पतञ्जलि से प्रार्थना की कि अष्टाध्यायी कठिन है, भली-भांति समझ नहीं आती, हमें समझा दीजिए। पतञ्जलि ने कहा कि मेरे चारों ओर परदा कर दो और फिर प्रश्न करते जाओ। पण्डितों ने ऐसा ही किया और प्रश्न करने लगे। परदे के भीतर से पतञ्जलि महाराज एक साथ सभी प्रश्नों का उत्तर देने लगे। पण्डित लोग कुछ देर तो अपने-अपने प्रश्नों का उत्तर लिखते रहे, परन्तु एक साथ अनेक प्रश्नों का उत्तर सुनकर उनको बड़ा आश्चर्य हुआ और कौतूहलवश उन्होंने जरा सा परदा हटा दिया। अन्दर पतञ्जलि महाराज अपना शेषनाग रूप धारण किये हुए हजार जिह्वाओं से प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे। परदा हटते ही क्रोध से उन्होंने जो फुंकार मारी तो पण्डितों के सारे पतरे जल गये। बचे केवल वह पतरे जो एक यक्ष किसी दूरस्थ वृक्ष पर बैठा लिख रहा था, दूरी के कारण यक्ष सारे प्रश्न-उत्तरों को यथावत् न लिख पाया था, परन्तु अन्य पतरे जल जाने के कारण उसी के लिखे पतरों ने महाभाष्य का रूप धारण किया और इसीलिए महाभाष्य का पाठ अस्तव्यस्त पाया जाता है।
यह कथा कितनी बेसिरपैर की है यह बताने की आवश्यकता नहीं। कहना केवल इतना ही है कि किसी समय दुर्भाग्यवश हमारे देश के तथाकथित पण्डितों ने अष्टाध्यायी तथा महाभाष्य का पढ़ना-पढ़ाना सर्वथा छोड़ दिया और कूप के मण्डूक बन बैठे। यही कारण था कि पौराणिक जगत् के गढ़ काशी नगरी के सर्वश्रेष्ठ विद्वान् महर्षि दयानन्द के महाभाष्यसम्बन्धी इस छोटे से प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाये कि व्याकरण में कहीं कल्म संज्ञा की है या नहीं। महाभाष्य उन्होंने कभी पढ़ा ही नहीं था। उत्तर देते तो कैसे। ‘नाच न जाने आङ्गन टेढ़ा’ की लोकोक्ति के अनुसार अपने असामर्थ्य को छिपाने के लिए उन्होंने महाभाष्य की निन्दासूचक यह कथा घड़ रखी थी।

Additional information

Weight 7600 g
Dimensions 26 × 17 × 26 cm

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