Devarshi Dayanand Charit
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Description
महाभारत के युद्ध से भारत का विध्वंस हो गया। विद्वान् मारे गये। ज्ञान-विज्ञान नष्ट हो गया। ऋषि-मुनियों की परम्परा लुप्त हो गई। परम प्रभु की अपूर्व अनुकम्पा से लगभग पाँच सहस्र वर्ष के पश्चात् पुनः एक महर्षि का प्रादुर्भाव हुआ।
महर्षि दयानन्द चहुँमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने धार्मिक क्षेत्र में तो क्रान्ति की ही, राजनैतिक क्षेत्र में भी उथल-पुथल मचा दी। उन्होंने बाल-विवाह और अनमेल विवाहों का निषेध किया, विधवा-विवाह का समर्थन किया। नारीजाति और अछूतों का उद्धार किया। वेदों का द्वार मानवमात्र के लिए खोल दिया। प्राचीन शिक्षा- प्रणाली का उद्धार किया, ब्रह्मचर्य पर बल दिया। गो-माता के वे वकील बने। उन्होंने कुरीतियों यथा- भूत-प्रेत; डाकिनी, शाकिनी, पिशाचिनी; जन्त्र-तन्त्र यन्त्र; फलित ज्योतिष्; हनुमान्-भैरव, मूर्तिपूजा, अवतारवाद, मृतकश्राद्ध, जन्मजात जाति-पाति, मद्य-मांस आदि पर प्रबल प्रहार किया। स्वराज्य की घोषणा करनेवाले महर्षि दयानन्द प्रथम भारतीय महापुरुष थे।
महर्षि दयानन्द की प्रमुख विशेषता थी – वेद का उद्धार, वेद का प्रचार और प्रसार। महर्षि सबसे पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने वेद का आर्यभाषा (हिन्दी) में भाष्य किया है।
महर्षि दयानन्द का जीवन अनुपम था। उनकी तुलना करना सम्भव नहीं। यदि यह कहा जाए कि वे सूर्य के समान थे तो बात जंचती नहीं, क्योंकि सूर्य ढलता है, चन्द्रमा घटता और बढ़ता है- इन दोनों को ग्रहण भी लगता है। समुद्र खारी है, हिमालय गलता है। दयानन्द तो बस दयानन्द ही थे। वे अतुलनीय व अनुपमेय थे।
महर्षि दयानन्द की यह जीवनी सर्वप्रथम दयानन्द संस्थान करोलबाग, नई दिल्ली से प्रकाशित हुई थी, इसके अनेक संस्करण निकले, परन्तु बहुत समय से यह अप्राप्त थी। जनता की निरन्तर माँग के कारण अब यह पुनः प्रकाशित की जा रही है।
Additional information
Weight | 338 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
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