Ganapath Vedang Prakash Vol 12
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इस पुस्तक का नाम गणपाठ इसलिये है कि एकत्र मिला के बहुत-बहुत शब्दों का समुदाय पठित है। यह पुस्तक पाणिनि मुनिजी का बनाया है इस के कार्यकर अष्टाध्यायों के सूत्र हैं। यद्यपि काशिकादि पुस्तकों में तत्तत् सूत्र पर गणपाठ भी छप गया है तथापि बीच-ब.व सूत्रों के दूर-दूर होने से गण भी दूर-दूर हैं, इससे कण्ठस्थ करना, विचारना वा अनुवृत्ति करना कठिन होता था । इसलिये उस उस गणकार्य सूत्र को सार्थक लिख कर उस उस सूत्र के एक दो उदाहरण भी दिये गए हैं और जिस जिस शब्द की विशेष व्याख्या अपेक्षित थी, उस उस पर एक आदि अङ्क लिख और रेखा देकर नीचे विवरण (जिसको नोट कहते हैं) लिखा है, जिसको भी यथायोग्य समझ लेना चाहिये। इन के अर्थ अष्टाध्यायी, निरुक्त, निघण्टु और उणादिकोप तथा प्रकृति प्रत्ययादि की ऊहा से समझ लेना योग्य है। यद्यपि भ्वादि और उणादि भी एक एक सूत्र पर गण हैं तो भी उनके बड़े और विलक्षण (१) होने से पृथक् श्रीपाणिनि मुनिजी ने लिखे हैं और सूत्र के समान वात्तिकगण हैं उन को भी वात्तिक के आगे लिख दिया है जो साधारणता से व्याकरण के बोधयुक्त हैं वे भी इनका रूप और अर्थ पढ़ पढ़ा सकते हैं ।।
Additional information
Weight | 150 g |
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Dimensions | 18 × 12 × 1 cm |
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