Ghor Ghane Jungle Mein
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Description
पूज्य श्री आनन्द स्वामी जी महाराज की कई कथाएँ आपने पढ़ौ हैं। उनकी पिछली कथा का शीर्षक था ‘उपनिषदों का सन्देश’ । उपनिषदों की संख्या वैसे अनगिनत है। नाम अच्छा था। इस नाम के लिए लोगों के हृदय में आदर था; इसलिए कितने ही लोगों ने कितने ही नामों से कितनी ही उपनिषदें लिख डालीं। इन्हीं में एक उपनिषद् वह भी है जिसे किसी ने सम्राट् अर्कैबेर को प्रसन्न करने के लिए लिखा था और जिसका नाम उसने रक्खा था ‘अल्लोपनिषद्’ । इसमें यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया कि ईश्वर का वास्तविक नाम अल्ला है और अकबर उसका दूत । स्पष्ट है कि इस उपनिषद् का आध्यात्मिक दर्शन से कोई सम्बन्ध नहीं । केवल एक सम्राट् को प्रसन्न करने के लिए यह किसी खुशामदी व्यक्ति ने लिखी जो संस्कृत का विद्वान् अवश्य था परन्तु अध्यात्मविज्ञान का विद्वान् नहीं था । इस प्रकार के अनगिनत उपनिषदों में कुछ अच्छे ग्रंथ भी हैं। उनमें भक्ति-रस है, वैराग्य की भावना है, किसी गुरु-विशेष की प्रशंसा नहीं । परन्तु उनमें वह उच्च आध्यात्मिक रहस्य है जिसने शोपनहार जैसे नास्तिक के मन को भी शान्ति दी थी और उसे यह कहने पर विवश किया था कि “यदि कहीं सच्ची शान्ति है तो वह भारत की उपनिषदों में है।” ऐसी उपनिषदें जिन्हें महर्षि दयानन्द ने प्रामाणिक माना है, ग्यारह हैं। ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक, छान्दोग्य और श्वेताश्वतर । इन सभी उप- निषदों का जो प्रमुख सन्देश है, उसी का वर्णन पूज्य स्वामी जी ने अपनी पिछली कथा में किया था। इस बार जो कथा आप पढ़ेंगे उसमें सभी उपनिषदों के सन्देश नहीं हैं, अपितु बृहदारण्यक उपनिषद् के केवल एक अध्याय का वर्णन है। बृहद् आरण्यक का अर्थ है, बड़ा जंगल । मैंने जब इस कथा को सुना तो ऐसा प्रतीत हुआ कि उस
Additional information
| Weight | 235 g |
|---|---|
| Dimensions | 18 × 12 × 1 cm |
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