Gobhilagrhyasutra
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Description
वेद सम्बन्धी अध्ययन के प्रारम्भिक काल से वेदार्थ ज्ञान के महत्त्व का वैदिकः विद्वानों ने निरन्तर प्रतिपादन किया है। अर्थज्ञान के बिना वेदों की आवृत्ति करने वाले को भारहार बताया गया है: – अधीत्य वेदं न विजानाति योऽर्थम् । स्थाणुरयं भारहारः किलाभूद् योऽर्थज्ञ इत् सकलं भद्रमश्नुते नाकमेति ज्ञानविधूतपाप्मा ।। ब्राह्मण ग्रन्थों से ही वेदार्थ की बहुमुखी व्याख्या का प्रारम्भ हुआ। तदनन्तर युगानुसार अध्येता की क्षमता को ध्यान में रख कर वेदाङ्गों का प्रणयन किया गया । वेदाङ्ग शब्द की यह व्युत्पत्ति इनके अर्थद्योतकत्व को ही अभिव्यक्त करती है ‘अङ्गयन्ते ज्ञायन्ते वेदा एभिरिति वेदाङ्गाः ।’ वैदिक कार्यकलाप के लिए प्रत्येक वेदाङ्ग का अपना अपना महत्त्व है ही, तथापि मानव के अभ्युदय एवं निःश्रेयस् की प्राप्ति के उपायों के निर्देशक होने के साथ ही उसकी दैनन्दिन जीवनचर्या के भी दिग्दर्शक होने से कल्पसूत्रों का विशेष महत्त्व है। व्यक्तिगत कल्याण के साधनों का परिचय श्रौत, गृह्य तथा शुल्वसूत्रों में उपलब्ध है तथा सामाजिक परिवेश में मानव के कर्तव्याकर्तव्यों का निर्णय धर्मसूत्रों में वर्णित है, जिनके विषय का पल्लवन बाद में स्मृतियों में हुआ। इस प्रकार मनुष्य के व्यक्तिगत एवं सामाजिक ऐहिक तथा आमुष्मिक, सभी प्रकार के कल्याण के साधनों का कल्पसूत्रों में विशद वर्णन मिलता है। सूत्र शैली में विरचित इन कल्पसूत्रों में श्रौतयाग, वेदिसम्बन्धी ज्ञातव्यकर्म; गृह्यसंस्कार तथा वर्णाश्रम धर्म का सुव्यवस्थित वर्णन संक्षेप में अनायास उपलब्ध होता है। कल्पसूत्रों में भी गृह्यसूत्रों की सामग्री साधारण जन के लिए विशेष रूप से उपादेय है। वस्तुतः समाज में ऐसी मान्यता थी कि व्यक्ति को द्विजत्व की प्राप्ति तथा वेदाध्ययन का अधिकार गृह्य-संस्कारों के द्वारा ही मिलता था- ‘जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्काराद् द्विज उच्यते ।’ विद्याभ्यासी भवेद् विप्रः त्रिभिश्रोत्रियलक्षणः ।। पद्मपुराण, सृष्टिखण्ड । वेद के छः अङ्ग है १. शिक्षा, २. कल्प, ३. निरुक्त, ४. व्याकरण, ५. छन्द और ६. ज्योतिष । षड्गुरुशिष्य द्वारा वेद के इन अङ्गों को हाथ और पैर के समान कहा गया है- छन्दः पादौ शब्दशास्त्रं च वक्त्रं कल्पं पाणी ज्योतिषं चक्षुषी च ।
Additional information
Weight | 634 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 4 cm |
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